मुस्लिम भाई समझ गए हैं तेरी क्या औकात बुखारी
गद्दारों से हाथ मिला कर तू चला देश की देने सुपारी
नब्ज़ तेरी छू कर के देखा तू दे रहा देश को है धोखा
नमक देश का खाकर तू करता सुबह शाम गद्दारी
फ़ितरत तेरी नहीं चलेगी मक्कारी भी यहीं जलेगी
चला लगाने देश दाव पर बना आज तू बड़ा जुआरी
नफ़रत की भाषा है गढ़ता बीज विषैले है तू बोता
नारा हिन्दू मुश्लिम का दे चलता चाल रोज दुधारी
मज़हब की दीवार खड़ी कर दंगों की साजिस है रचता
क्या जवाब तू खुद को देगा छोडो भी अब ये मक्कारी
हिन्दू -मुस्लिम नहीं लड़ेंगें साथ राम अल्लाह कहेंगें
एक साथ हम मिल के रहेंगे चुप हो जा तू आज बुखारी
अज़ीज़ जौनपुरी
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