1.
समझा था जिसे आग वो धुआँ निकला
न वो कशिश बची न वो मज़ा रहा
2.
रह -रह के धड़कता है कुछ मिरे भीतर
गोया पहलू में दिल किसी का करवट बदल रहा हो
3.
है कुछ मिरे अन्दर जो बैचैन सा रहता है
जाने तेरा दिल है या दिल मेरा
4.
अच्छा हुआ की आप महफ़िल में नहीं आए
वर्ना कई रकीब तेरी जाँ पे उतारू थे
5.
ये हुश्न की मंडी है तिज़ारत है इश्क की
अल्लाह के बन्दों को फुर्शत कहाँ वो आएँ
अज़ीज़ जौनपुरी
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