अकेला ही भला था मैं अकेला ही भला हूँ मैं
बहुत खुश हूँ अकेले मैं अकेले ही चला हूँ मैं
हर कदम पर मुश्किलों का सामना हमने किया है
रात की क्या बात करना गया दिन में छला हूँ मैं
मिट गए हर हर्फ़ जो हमने किताबों में लिखे थे
इक- इक बिखरे पन्नो की किताबों सा जला हूँ मैं
हमारी कोशिशें थीं के तहज़ीब दुनिया को सिखाएं
जब -जब जलीं तहज़ीब है तब -तब जला हूँ मैं
हिम्मत थी मेरी जो मौत को भी मात देती थी
वक्त की छाती पे अक्सर मूंग जी भर दला हूँ मैं
है फक्र मुझको खुद पे इतना जी रहा हूँ शान से
न उपलब्धियों के नाम पे हाथ अपना मला हूँ मैं
देखकर मक्कारियाँ औ फ़ितरत जमानें की
दोस्तों के घर में अपनें दुश्मनों सा पला हूँ मैं
अज़ीज़ जौनपुरी
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