मंच हो ऐसा सजा
गुलमोहर के फूल जैसा
गलतिओं और भूल पर
हो मृदुल भावों की वर्षा
हर शब्द पर हो पैनी नज़र
औ टिप्पणी हो धार जैसा
सच देखना सुनना व कहना
मंच का आसन हो जैसा
नित नए नूतन सुझावों
औ ज्ञान की हो सतत वर्षा
रचनाकारों तुम भी सुन लो
गर न हो बाणों की वर्षा
हम अधूरे ही रहेगें
गर न होगी ज्ञान वर्षा
सहजता हो धैर्य हो
श्रवण का सामर्थ्य हो
तब तपस्या होगी पूरी
और होगी सत्य वर्षा
सोच का विस्तार हो
साधना का भाव हो
स्वागत करें हम टिप्पणी का
जब आलोचना की हो वर्षा
अन्यथा लेने की आदत से
स्वयं को विरत कर लें
तभी होगी लेखनी पर
सरस्वती की मान वर्षा
अज़ीज़ जौनपुरी
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