खौफ़ इस कदर है तो लोग घर से निकलते क्यों है
मैं बेवफ़ा ही सही लोग आखिर मुझपे मरते क्यों हैं
ज़ुल्म ढाया है वक्त ने , के ता-उम्र मैं तनहा ही रहा
लोग समझ हुजूम मुझको मेरे साथ चलते क्यों है
न ज़मीं ही बची पाँव के नीचे न सर पे आसमान रहा
मैं बेसहारा ही सही लोग ऊँगली पकड़ते क्यों है
कदम कदम पे फिसलन भरा इक नया मोड़ आता है
खबर इस हकीकत की है आखिर लोग फिसलते क्यों है
अच्छा किया की वक्त ने आईना दिखा दिया मुझको
छोड़ कर मेरा हाथ जाने वाले लौट हाथ पकड़ते क्यों है
चलो अच्छा हुआ ज़माने ने कुछ तो दिया मुझको
मानी वफ़ा के आज भी मेरे दोस्त सब समझते क्यों है
कुछ तो है अज़ीज़ तुममें तू न समझ तन्हां खुद को
जो जलते हैं देख कर तुमको वही तुझपर मरते क्यों है
दिल अज़ीज़ का मोहब्बत का शिवाला है दुनियाँ वालों
आखिर लोग होमो -हवन करने से डरते क्यों है
अज़ीज़ जौनपुरी
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