वतन से दूर कहीं वतन से दूर नहीं
( थेम्स की घाटी से )
हर मज़हब के फूल खिलेंगें संसद की दीवारों में
नहीं चलेगी कानाफूंसी सत्ता के गलियारों में
नहीं मचेंगें वाद के झगड़े नहीं रहेंगी झंझट भाषा की
मानवता की भाषा गढ़ हम लिख देंगें अख़बारों में
सुबह को होली रात दीवाली हर रोज ईद मनायेगें
खुशिओं के आंसूं छलकेंगें घर आँगन चौबारों में
कर्म भी होगा धर्म भी होगा मानवता की बू-बास भी होगी
लिपि प्रेम की लिख देंगें मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारों में
धर्मवाद का डंस न होगा जातिवाद का कंस न होगा
मानवता के पद - चिन्हों को हम गढ़ देंगे मीनारों में
शिल्पी होगा नव विहान का नयी शाम का सृजन करेगें
घर -घर की खुशियाँ लिख देंगें लाल किला के दीवारों में
अज़ीज़ जौनपुरी
No comments:
Post a Comment