कौन पढ़ सकता है
कौन पढ़ सकता है मेरे अश्कों में लिक्खी मेरी ग़ज़लें
थीं कभी मौज़े दरिया , आज बेवा हो गईं मेरी गजलें
चूम लेता हूँ चीनार के दरख्तों को आज भी ख्वाबों में
चीनार के दरख्तों पे रूह बन भटक रहीं हैं मेरी ग़ज़लें
मेरी गज़लें जो चेनाब की लहरों पे बैठ नमाज़ पढ़तीं थीं
रमज़ान के महीने में हाय खुदकसी कर लीं मेरी गज़लें
अज़ीज़ से अक्सर रातों में एक रूह आ-आ के ऱोज कहती है
अश्कों को तू छुपा ले कब्र में तड़प रहीं हैं तेरी गजलें
गर अज़ीज़ की ग़ज़लें गुज़रें तो बिछा देना दिल कि धडकन
बड़ी सिरफ़िरी है कहीं बहक न जांयें अज़ीज़ की ग़ज़लें
अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteWaah kya bahut bahut hseen hai ye aapki gazlen .
ReplyDeleteबढ़िया है भाई -
ReplyDeleteआभार-
सुन्दर और भावपूर्ण गजल.....
ReplyDelete:-)
सुन्दर गजल आदरणीय ....
ReplyDeleteरमजान के़़़़़़़़़़़़..........ख़ुदकुशी कर गई ग़ज़लें , ली के स्थान पर गई हो सकता है शायद । Thanks
ReplyDeleteशालिमा जी,,आप का सुझाव उचित एवम सटीक है ,कृपया और गजलों पर भी नजर फ़ेर लीजिये, मेहरबानी होगी
Deleteखूबसूरत ग़ज़ल के लिए आभार आपका !
ReplyDeleteस्मृतिओं के झरोखे झांकती सुन्दर गजल हाँ वो चिनार के पेड़ .........और बहुत कुछ अज़ीज़ से अक्सर रातों में एक रूह आ-आ के ऱोज कहती है
ReplyDeleteअश्कों को तू छुपा ले कब्र में तड़प रहीं हैं तेरी गजलें
खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteHum sabne padh lee aapki gazalen
ReplyDeleteek ek sher sawaa ser ka lagaa
संवेदनाऔर भावपूर्ण ग़ज़ल !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल...
ReplyDelete