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Friday, August 2, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी :कौन पढ़ सकता है

 
  कौन पढ़ सकता है 


 कौन पढ़  सकता है  मेरे  अश्कों  में   लिक्खी मेरी  ग़ज़लें
 थीं  कभी  मौज़े  दरिया ,  आज  बेवा  हो  गईं  मेरी गजलें

 चूम  लेता  हूँ  चीनार  के दरख्तों  को आज  भी  ख्वाबों में 
चीनार  के  दरख्तों पे  रूह  बन  भटक  रहीं  हैं  मेरी ग़ज़लें

मेरी  गज़लें  जो  चेनाब  की लहरों पे  बैठ नमाज़ पढ़तीं थीं
रमज़ान के  महीने  में  हाय  खुदकसी  कर  लीं मेरी गज़लें

अज़ीज़ से अक्सर रातों में एक रूह आ-आ के ऱोज कहती है
अश्कों  को   तू  छुपा ले  कब्र  में  तड़प  रहीं  हैं  तेरी गजलें

 गर अज़ीज़ की ग़ज़लें गुज़रें तो बिछा देना दिल कि धडकन
 बड़ी  सिरफ़िरी  है  कहीं  बहक  न  जांयें  अज़ीज़  की ग़ज़लें

                                                   अज़ीज़ जौनपुरी 


               
                        


 

                          

13 comments:

  1. Waah kya bahut bahut hseen hai ye aapki gazlen .

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  2. बढ़िया है भाई -
    आभार-

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  3. सुन्दर और भावपूर्ण गजल.....
    :-)

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  4. सुन्दर गजल आदरणीय ....

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  5. रमजान के़़़़़़़़़़़़..........ख़ुदकुशी कर गई ग़ज़लें , ली के स्थान पर गई हो सकता है शायद । Thanks

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    1. शालिमा जी,,आप का सुझाव उचित एवम सटीक है ,कृपया और गजलों पर भी नजर फ़ेर लीजिये, मेहरबानी होगी

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  6. खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आभार आपका !

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  7. स्मृतिओं के झरोखे झांकती सुन्दर गजल हाँ वो चिनार के पेड़ .........और बहुत कुछ अज़ीज़ से अक्सर रातों में एक रूह आ-आ के ऱोज कहती है
    अश्कों को तू छुपा ले कब्र में तड़प रहीं हैं तेरी गजलें

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  8. खूबसूरत ग़ज़ल

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  9. संवेदनाऔर भावपूर्ण ग़ज़ल !!

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  10. बहुत सुन्दर गज़ल...

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