उनको आज़ रो बैठे
ग़र तेरी नज़रें- नवाज़ हो ज़ाये
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मेरी ख़्वाहिस नमाज़ हो जाये
तमाम उम्र हिज़्र में गुज़री
आओ कि ज़िन्दगी साज़ हो जाये
क्या कुछ और देखने को बाक़ी है
क्यों न धड़कन मेरी आवाज़ हो जाये
आज बाम पर चाँदनी नहीं उतरी
क्यों न कूये-यार में नमाज़ हो जाये
क्यों न धड़कन मेरी आवाज़ हो जाये
आज बाम पर चाँदनी नहीं उतरी
क्यों न कूये-यार में नमाज़ हो जाये
न जानें क्यों उनको आज रो बैठे
इश्क़ रुस्वा न रहे और राज़ हो जाये
अज़ीज़ जौनपुरी
सुन्दर लेख
ReplyDeleteआज बाम पर चाँदनी नहीं उतरी
ReplyDeleteक्यों न कूये-यार में नमाज़ हो जाये
न जानें क्यों उनको आज रो बैठे
इश्क़ रुस्वा न रहे और राज़ हो जाये
खूबसूरत ग़ज़ल
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteतमाम उम्र हिज़्र में गुज़री
आओ कि ज़िन्दगी साज़ हो जाये
राखी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबाकी बातें बाद में
ReplyDeleteआज बाम पर चाँदनी नहीं उतरी
क्यों न कूये-यार में नमाज़ हो जाये
क्या खूब बात कही है शानदार शैर कहा है। रीडिंग में आपका प्रवास फलप्रद रहे सुखदाई रहे गजल मय रहे -
आप दोनों गजल हो जाएँ
मुल्क में ईद शबे रात मने।
वाह.. बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteक्या कुछ और देखने को बाक़ी है
ReplyDeleteक्यों न धड़कन मेरी आवाज़ हो जाये
तू हाथ लगाए और वीणा स्वर ताल हो जाए। शुक्रिया भाई साहाब आपके टिपण्णी का।
हर शैर काबिले गौर है।
ReplyDeleteक्या कुछ और देखने को बाक़ी है
क्यों न धड़कन मेरी आवाज़ हो जाये
शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए।
बहुत बढ़िया
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