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Sunday, August 25, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : लन्दन की फ़ज़ाओं में

    लंदन  की फ़ज़ाओं में 



   क्या  हुस्न   क्या  अदा   है  लंदन  की   फ़ज़ाओं में 
   मदहोस     मोहब्बत   है     लंदन    की   सदाओं में 

   थेम्स  की   नज़ाकत    है , कुदरत  का   करिश्मा है
   शोला  भी  है   शबनम  भी  है  लंदन  की  हवाओ में 

    हर आँख में सागर है,मय है  हुश्न -ए-साज़े- तरब है 
    गुलनार  की  खुशबू  है,  मदहोश काफ़िर अदाओं  में 

    हर  रुखसार पे जड़े हैं सुर्खी के बहकते नगीने  लाखों   
   बहकी हुयी तबस्सुम  फिरती है,लन्दन की वफ़ाओं में  

   रक्से मय तेज़ करो तेज़ करो कि न हिज्र की रात रहे  
   ज़ाम छलकाते माहताब उतरा है लन्दन की हवाओं में 

   एक   बात   अखरती  है    मेरे   दिल    पे गुज़रती  है 
   तहज़ीबो  गंगो- ज़मन लुट गई  लन्दन की  हवाओं में  

                                                  अज़ीज़ जौनपुरी   

    


   

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (26-08-2013) को सुनो गुज़ारिश बाँकेबिहारी :चर्चामंच 1349में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर भाव लिए रचना

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  3. एक बात अखरती है मेरे दिल से गुज़रती है
    तहज़ीबो गंगो- ज़मन लुट गई लन्दन की हवाओं में

    बात कहिये जनाब काँटा मत चुभाइए वाह

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  4. बहुत ख़ूब , लंदन की हवाओं में ख़ुशबू भी है मोहब्बत की

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  5. एक बात अखरती है मेरे दिल से गुज़रती है
    तहज़ीबो गंगो-ज़मन लुट गई लन्दन की हवाओं में,,,

    वाह वाह !!! बहुत खूब सुंदर गजल ,,,अज़ीज़ जी बधाई..

    RECENT POST : पाँच( दोहे )

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  6. एक बात अखरती है मेरे दिल से गुज़रती है
    तहज़ीबो गंगो- ज़मन लुट गई लन्दन की हवाओं में

    याद आया वतन अपना लन्दन की हवाओं में बहुत खूब लिखा है आपने शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का। खुश रहो आबाद रहो। लन्दन को अपनी औकात में रखो ज्यादा भाव न दो।

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  7. लंदन की गलियों जब हुशन की पाजेबें खनकती हैं ,मत पूछिये ज़नाब क्या दिल पे गुज़रती है,
    कि आग लगे और आग लगे आग लगे मत पूछ हुस्नों जवानी पे हाय क्या क्या न गुज़रती है
    कि भर ले अपनी बाहों में कोई जी भर के,पिघल जाये जवानी कि हद से गुज़रती है
    हाय ज़िंदगी न ज़ले न आग लगे न राख हो,

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