जताना चाहता है
वो ज़माने को ज़ताना चाहता है
अपनी ताकत आजमाना चाहता है
ज़माने नें ऊँगली उठाई क्या हुआ
ज़माने को ठेंगा दिखाना चाहता है
किसी और ने उसको सताया
और वो मुझको सताना चाहता है
ज़हर खा मर गया उसका पड़ोसी
मुझको पड़ोसी बनाना चाहता है
जिंदगी भर ख़ुद को रुलाता ही रहा
अब मुझको रुलाना चाहता है
कतराता रहा ख़ुद को आज़माने से
वो मुझको आजमाना चाहता है
सताना था सता लेता बता देता
बहाना सताने का बनाना चाहता है
बड़ा मगरुर है वो नशे में चूर है वो
मेरे दिल से रस्ता बनाना चाहता है
मुझको पैमाना बनाते रह गया वो
ख़ुद को साकी बनाना चाहता है
अज़ीज़ जौनपुरी
बड़ा मगरुर है वो नशे में चूर है वो
मेरे दिल से रस्ता बनाना चाहता है
मुझको पैमाना बनाते रह गया वो
ख़ुद को साकी बनाना चाहता है
अज़ीज़ जौनपुरी
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
सुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteआपकी रचना कल बुधवार [10-07-2013] को
ReplyDeleteब्लॉग प्रसारण पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति !!
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