है बहुत नाज़ मुझे तेरी , फरिश्तये - निगहबानी पर
दो हर्फ़ उल्फ़त के लिख दिये मेरी पेशानी पर
हुश्न की शादाब बेलों का रुखसार पे यूँ लचक पानी पीना
नक्श-ए-माज़ी सी लगे, फिज़ां को चूमती अबशारे रवानी पर
खिले -खिले से महकते फ़ूल तेरे होठों पर आरज़ूओं के
है हसरत पकड़ बाँहों चूंम लूँ तुझको तेरी इमानी पर
तुमको कुदरत ने ये जो बक्शा है रंगे वफ़ा का जूनून
फ़िदा हुआ मिज़ाज़ का आलम, तेरी हसरते नादानी पर
मौसम का इशारा है, अब तुम घर से निकल आओ
अज़ीज़ जौनपुरी
फ़िदा हुआ मिज़ाज़ का आलम, तेरी हसरते नादानी पर
मौसम का इशारा है, अब तुम घर से निकल आओ
अपने होठों से चूम ख़ुदा नाम लिख दो मेरी पेशानी पर
तेरी ज़ुल्फों में शाम गुलनार हुई जाती है,हाय ये बाँकपन तेरा
मुमकिन है ख़ुदा भी झुक जाये हाय तेरी मेहरबानी पर
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल....
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