नकार देता है
आईनों की क्या कहें सारे नकाब उतार देता है
मेरा चेहरा अब मुझको ही नकार देता है
न जाने किस - किस के चेहरे लगा लिया मैंने
आज मेरा चेहरा मेरे चेहरे का रंग उतार देता है
खत्म हो गई तमाम उम्र ख़ुद की तलाश में
मेरा चेहरा आज कल मेरा चेहरा उतार देता है
जो शक्श मेरे चेहरे को अपना बताता रहा
आज वह़ी शक्श मेरे चेहरे को नकार देता है
कल तलक जो मुझको अपनों में गिना करते थे
आज वही मुझको पहचानने से नकार देता है
किस- किस का नाम लूँ, किस - किस को गिनाऊं
सब अपने हैं, करीब हैं, जो चेहरा उतार देता हैं
मेरी आँखें सिसक रहीं हैं बन दरिया चनाब की
मेरे दिल के फ़क़ीरी को, मेरा दोस्त नकार देता है
चलो चलें कहीं दूर बहुत दूर चलें ख़ुदकसी कर लें
यहाँ ,मेरा घर ,मेरा पता, मुझको ही नकार देता है
अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (23-07-2013) को मंगलवारीय चर्चा 1315----तस्मै श्री गुरुवे नमः ! पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Khudkushi ?
ReplyDeleteKewal kavita puri karani ho to
thik hai
Sayeed Ahmad
ReplyDelete7:33 AM
Dear Brother Mr. Aziz Jaunpuri
Your all the poetry are heart touching and excellent. You deserve my GREAT appreciation for your excellent thoughts. Regards.
वाह अजीज भाई जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,आपने पुरी दिल की ही बात कह दी.
बढ़िया है आदरणीया-
ReplyDeleteआभार-
बढ़िया प्रस्तुति अज़ीज़ साहेब !
ReplyDeletelatest दिल के टुकड़े
latest post क्या अर्पण करूँ !
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletesundar abhivyakti ..
ReplyDeleteकई बार अपना ही चेहरा खुद को पहचानने से इंकार कर देता है... बहुत खूब. दाद स्वीकारें.
ReplyDeleteचलो चलें कहीं दूर बहुत दूर चलें ख़ुदकसी कर लें
ReplyDeleteयहाँ ,मेरा घर ,मेरा पता, मुझको ही नकार देता है
BEAUTIFUL LINES
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
ReplyDelete"यहाँ मेरा घर, मेरा पता ,मुझको ही नकार देता है "
बहुत सुन्दर |
आशा
लाजवाब कहन का अंदाज़ ...
ReplyDeleteहकीकत बताती सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह,क्या बात है !
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