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Saturday, July 13, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी :क्या-क्या नहीं देखा




   
   क्या-क्या नहीं देखा


निगाहें शौक ने तिलिश्मे -हुस्न का क्या  हंसीं मंज़र देखा 
ठहर  गई  निगाहें वहीँ उसी वख्त जब उनका चेहरा देखा

जिश्म की लज़रती  बेलों  पे  मचलती  हुश्न  की  कलियाँ 
बंद पलकों में  ख़ामोश कभी  उनको कभी  ख़ुद  को देखा

सुर्ख  रूखसार   पे   क्या   कहिये , क्या - क्या   नहीं  देखा 
कुदरत  का   करिस्मा   देखा   ज़न्नत   का  नज़ारा  देखा

दिल  क्या  रूह  भी  इस   कैद  से  आज़ाद   नहीं  अज़ीज़
वज्में-दिल में कुदरत का नगीना देखा जब से उनको देखा  

                                                       अज़ीज़ जौनपुरी

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