मधु सिंह
ज़िन्दगी से हमको कोई शिकायत नहीं रही
वफ़ा परस्ती की किसी से कोई चाहत नहीं रही
मेरा होना ही तूफ़ान सा खलता रहा जिनको
उन दुश्मनों से भी कभी कोई अदावत नहीं रही
मधु "मुस्कान"
Wah wah ....kya khoob intkhaab hai....
ReplyDeleteलाजवाब " ज़ज्बात के दरख्तों के बड़े नाज़ुक तने हैं,और नदिओं के किनारे हमारे घर बने हैं ,
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है जनाब ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : ऐसी गजल गाता नही,
waah kya bat hai ....
ReplyDeleteवाह .. क्या खूब कहा है ...
ReplyDeleteबहुत खूब !!!
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