दिये मकबरे पर जलाती रहो
पास आओ मेंरे, चंद लमहें गुज़ारो,मेरे पहलू में तुम यूँ ही बैठी रहो
मेरे ख्वाबों के मकाँ जल न जाएं कहीं , चिरागे- मोहब्बत जलाती रहो
आँधियाँ तेज हैं, बुझ न जाएं कहीं चाहतों के दिये, ख़ामोश यूँ हीं न बैठी रहो
कल कहाँ , किस तरफ , तुम कहाँ मैं कहाँ , हसरतें मेरी तुम जगाती रहो
दिल पत्थरों के , मकाँ पत्थरों के , मोम सी तुम यूँ ही पिघलती रहो
सुब्ह हो,या न हो क्या भरोसा है कल का, वक्त की नब्ज को तुम जगाती रहो
जिश्म से रूह एक दिन निकल जायगी , बन रूह दिल में धड़कती रहो
ख़ाक हो भी गया तो क्या ,लौट आऊँगा फ़िर ,दिये मकबरे पर जलाती रहो
वक्त मरने का ख़ुद यूँ ही टल जयगा , मेरी पलकों पे यूं हीं मचलती रहो
सुब्ह हो,या न हो क्या भरोसा है कल का, वक्त की नब्ज को तुम जगाती रहो
जिश्म से रूह एक दिन निकल जायगी , बन रूह दिल में धड़कती रहो
ख़ाक हो भी गया तो क्या ,लौट आऊँगा फ़िर ,दिये मकबरे पर जलाती रहो
वक्त मरने का ख़ुद यूँ ही टल जयगा , मेरी पलकों पे यूं हीं मचलती रहो
तुझे क्या बताऊँ मै ए खुश नशीं, सुबह-शाम जिश्म में रूह को बुलाती रहो
अज़ीज़ जौनपुरी
lajwaab ashaar se aarasta ghazal ..wahh wahh
ReplyDeleteवक्त मरने का ख़ुद यूँ ही टल जयगा , मेरी पलकों पे यूं हीं मचलती रहो
ReplyDeleteतुझे क्या बताऊँ मै ए खुश नशीं, सुबह-शाम जिश्म में रूह बन उतरती रहो
वाह वाह एक बेशकीमती ग़ज़ल पढने को मिली दिली दाद कबूल करें
शुभप्रभात
ReplyDeleteदिल पत्थरों के , मकाँ पत्थरों के , मोम सी तुम यूँ ही पिघलती रहो
सुब्ह हो या न हो क्या भरोसा है कल का , वक्त की नब्ज पकड़ती रहो
उम्दा गजल
खूबसूरत प्रस्तुति
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (01-06-2013) बिना अपने शब्दों को आवाज़ दिये (चर्चा मंचःअंक-1262) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteलाजवाब गजल ,जिश्म से रूह एक दिन निकल जायगी , बन रूह दिल में धड़कती रहो ख़ाक हो भी गया तो क्या ,लौट आऊँगा फ़िर ,दिये मकबरे पर जलाती रहो
ReplyDeleteसुन्दर गजल !!
ReplyDeleteबहुत खूब! आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक २ जून २०१३ को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल सुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteवक्त मरने का ख़ुद यूँ ही टल जयगा , मेरी पलकों पे यूं हीं मचलती रहो
ReplyDeleteतुझे क्या बताऊँ मै ए खुश नशीं, सुबह-शाम जिश्म में रूह बन उतरती रहो ....... सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना..
आभार.
अयंगर.
लाजवाब,उम्दा पेशकश ।
ReplyDeleteदिल पत्थरों के , मकाँ पत्थरों के , मोम सी तुम यूँ ही पिघलती रहो
ReplyDeleteसुब्ह हो,या न हो क्या भरोसा है कल का, वक्त की नब्ज को तुम जगाती रहो ..
बहुत उम्दा शेर ... उनके आने से ही हवा चलती है ... प्रेम की खुशबू लिए ...
जिश्म से रूह एक दिन निकल जायगी , बन रूह दिल में धड़कती रहो
ReplyDeleteख़ाक हो भी गया तो क्या ,लौट आऊँगा फ़िर ,दिये मकबरे पर जलाती रह
वक्त मरने का ख़ुद यूँ ही टल जयगा , मेरी पलकों पे यूं हीं मचलती रह
तुझे क्या बताऊँ मै ए खुश नशीं, सुबह-शाम जिश्म में रूह को बुलाती रहो
बहुत सुंदर गजल .सादर..
AAPANE DIL KI BAAT KAH DI
ReplyDeleteआँधियाँ तेज हैं, बुझ न जाएं कहीं चाहतों के दिये, ख़ामोश यूँ हीं न बैठी रहो
कल कहाँ , किस तरफ , तुम कहाँ मैं कहाँ , हसरतें मेरी तुम जगाती रहो