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Friday, May 31, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : दिये मकबरे पर जलाती रहो


               दिये मकबरे पर जलाती रहो

             
               पास   आओ  मेंरे,  चंद   लमहें   गुज़ारो,मेरे   पहलू  में  तुम यूँ  ही  बैठी  रहो
               मेरे  ख्वाबों  के  मकाँ  जल न  जाएं  कहीं ,    चिरागे- मोहब्बत  जलाती रहो

              आँधियाँ तेज हैं, बुझ न जाएं कहीं चाहतों के  दिये,  ख़ामोश यूँ  हीं न  बैठी रहो 
              कल  कहाँ , किस  तरफ , तुम  कहाँ  मैं  कहाँ , हसरतें  मेरी  तुम  जगाती रहो 
              
              दिल   पत्थरों  के ,  मकाँ   पत्थरों  के ,  मोम  सी  तुम  यूँ   ही  पिघलती रहो
              सुब्ह हो,या न हो क्या भरोसा है कल का, वक्त की नब्ज को तुम जगाती  रहो  

               जिश्म से  रूह  एक  दिन  निकल  जायगी , बन  रूह  दिल  में  धड़कती रहो 
               ख़ाक हो भी गया तो क्या ,लौट आऊँगा  फ़िर  ,दिये  मकबरे पर जलाती रहो

               वक्त  मरने  का  ख़ुद यूँ  ही टल जयगा , मेरी  पलकों पे यूं  हीं मचलती  रहो
              तुझे  क्या  बताऊँ  मै  ए खुश नशीं, सुबह-शाम जिश्म में रूह को बुलाती रहो 

            
                                                                                                  अज़ीज़ जौनपुरी
             
    
            
             

           

15 comments:

  1. lajwaab ashaar se aarasta ghazal ..wahh wahh

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  2. वक्त मरने का ख़ुद यूँ ही टल जयगा , मेरी पलकों पे यूं हीं मचलती रहो
    तुझे क्या बताऊँ मै ए खुश नशीं, सुबह-शाम जिश्म में रूह बन उतरती रहो
    वाह वाह एक बेशकीमती ग़ज़ल पढने को मिली दिली दाद कबूल करें

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  3. शुभप्रभात
    दिल पत्थरों के , मकाँ पत्थरों के , मोम सी तुम यूँ ही पिघलती रहो
    सुब्ह हो या न हो क्या भरोसा है कल का , वक्त की नब्ज पकड़ती रहो
    उम्दा गजल
    खूबसूरत प्रस्तुति
    हार्दिक शुभकामनायें

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (01-06-2013) बिना अपने शब्दों को आवाज़ दिये (चर्चा मंचःअंक-1262) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. खूबसूरत ग़ज़ल

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  6. लाजवाब गजल ,जिश्म से रूह एक दिन निकल जायगी , बन रूह दिल में धड़कती रहो ख़ाक हो भी गया तो क्या ,लौट आऊँगा फ़िर ,दिये मकबरे पर जलाती रहो

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  7. बहुत खूब! आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक २ जून २०१३ को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...

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  8. बेहतरीन ग़ज़ल सुंदर प्रस्तुति !!

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  9. वक्त मरने का ख़ुद यूँ ही टल जयगा , मेरी पलकों पे यूं हीं मचलती रहो
    तुझे क्या बताऊँ मै ए खुश नशीं, सुबह-शाम जिश्म में रूह बन उतरती रहो ....... सुंदर ग़ज़ल

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  10. बहुत ही अच्छी रचना..

    आभार.

    अयंगर.

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  11. लाजवाब,उम्दा पेशकश ।

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  12. दिल पत्थरों के , मकाँ पत्थरों के , मोम सी तुम यूँ ही पिघलती रहो
    सुब्ह हो,या न हो क्या भरोसा है कल का, वक्त की नब्ज को तुम जगाती रहो ..

    बहुत उम्दा शेर ... उनके आने से ही हवा चलती है ... प्रेम की खुशबू लिए ...

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  13. जिश्म से रूह एक दिन निकल जायगी , बन रूह दिल में धड़कती रहो
    ख़ाक हो भी गया तो क्या ,लौट आऊँगा फ़िर ,दिये मकबरे पर जलाती रह
    वक्त मरने का ख़ुद यूँ ही टल जयगा , मेरी पलकों पे यूं हीं मचलती रह
    तुझे क्या बताऊँ मै ए खुश नशीं, सुबह-शाम जिश्म में रूह को बुलाती रहो

    बहुत सुंदर गजल .सादर..

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  14. AAPANE DIL KI BAAT KAH DI

    आँधियाँ तेज हैं, बुझ न जाएं कहीं चाहतों के दिये, ख़ामोश यूँ हीं न बैठी रहो
    कल कहाँ , किस तरफ , तुम कहाँ मैं कहाँ , हसरतें मेरी तुम जगाती रहो

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