Pages

Saturday, June 8, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : मुझको ईसा समझ

       मुझको ईसा समझ 

  
    एक पत्थर  आसमा से गिरा , और दूसरा तू उछाल आया
    मुझको ईसा समझ तुमने, सारे पत्थर फ़िर उछाल आया

    देखिए  उस  तरफ़  उजाला है . जिधर  रौशनी नहीं जाती
    सलीब  पे लटके  ईसा से , फ़िर तू कर  नया सवाल आया

    इस  बस्ती  में  तो  सिर्फ़  गूँगें  और  बहरे  लोग  बसते हैं
    गुनाहगार  ईसा  को  बता,  तू  कर  नया   कमाल  आया

   नई  तहज़ीब के तहत आईने  अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
   नाहक, पत्थरों  के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया

   सुबह निकली थी धूप सज़-धज़ कर, उस तरफ़ अन्धेरें में
   दिया किस जगह और कहाँ जलाना था,तू कहाँ बाल आया

   दोस्तों, मालूम  है  एक   बाजू  जब   से   मेरा  कट गया है,
   अपने  टूटे हुए बाजुओं से  मैं , सारी दुनियाँ खँगाल आया

   बाल आया - जला आया 

                                                            अज़ीज़ जौनपुरी 
   
    

   

  
   
   
 
    
   
     

     
   

       

16 comments:

  1. waah waaaaaaa bhetri gazal hai .......
    नई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
    नाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया
    kmal ka sher hai waaaaaaaaaah

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति !!

    ReplyDelete
  3. सुबह निकली थी धूप सज़-धज़ कर, उस तरफ़ अन्धेरें में
    दिया किस जगह और कहाँ जलाना था,तू कहाँ बाल आया
    bahut sundar

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब ,एक पत्थरआसमा से गिरा,और दूसरा तू उछाल आया
    मुझको ईसा समझ तुमने,सारे पत्थर फ़िर उछाल आया

    देखिए उस तरफ़ उजाला है जिधर रौशनी नहीं जाती
    सलीब पे लटके ईसा से,फ़िर तू कर नया सवाल आया

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (09-06-2013) को तो क्या हुआ : चर्चा मंच 1270 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  6. अपने टूटे बाजू के बाद भी दुनियां खंगाल ने की कल्पना और शक्ति अति उत्तम।

    ReplyDelete
  7. नई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
    नाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया

    उम्दा अश’आर

    ReplyDelete
  8. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।

    ReplyDelete
  9. नई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
    नाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया
    वैसे सभी शेर बढ़िया है.

    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

    ReplyDelete
  10. दोस्तों, एक बाजू जब से मेरा कट गया है,मालूम है तुम्हें
    अपने टूटे हुए बाजुओं से मैं , सारी दुनियाँ खँगाल आया

    निःशब्द करते शब्द लाजवाब

    ReplyDelete
  11. नई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
    नाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया.

    क्या लिखा है अज़ीज़ साहब मज़ा आ गया. बहुत सुंदर गज़ल.

    ReplyDelete
  12. क्या बात है अजीज साहब ... लाजवाब गज़ल है ... रोशनाई के रंग लिए ...

    ReplyDelete
  13. दोस्तों, एक बाजू जब से मेरा कट गया है,मालूम है तुम्हें
    अपने टूटे हुए बाजुओं से मैं , सारी दुनियाँ खँगाल आया...........बहुत सुन्दर

    ReplyDelete