मुझको ईसा समझ
एक पत्थर आसमा से गिरा , और दूसरा तू उछाल आया
मुझको ईसा समझ तुमने, सारे पत्थर फ़िर उछाल आया
देखिए उस तरफ़ उजाला है . जिधर रौशनी नहीं जाती
सलीब पे लटके ईसा से , फ़िर तू कर नया सवाल आया
इस बस्ती में तो सिर्फ़ गूँगें और बहरे लोग बसते हैं
गुनाहगार ईसा को बता, तू कर नया कमाल आया
नई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
नाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया
सुबह निकली थी धूप सज़-धज़ कर, उस तरफ़ अन्धेरें में
दिया किस जगह और कहाँ जलाना था,तू कहाँ बाल आया
दोस्तों, मालूम है एक बाजू जब से मेरा कट गया है,
अपने टूटे हुए बाजुओं से मैं , सारी दुनियाँ खँगाल आया
बाल आया - जला आया
अज़ीज़ जौनपुरी
मुझको ईसा समझ तुमने, सारे पत्थर फ़िर उछाल आया
देखिए उस तरफ़ उजाला है . जिधर रौशनी नहीं जाती
सलीब पे लटके ईसा से , फ़िर तू कर नया सवाल आया
इस बस्ती में तो सिर्फ़ गूँगें और बहरे लोग बसते हैं
गुनाहगार ईसा को बता, तू कर नया कमाल आया
नई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
नाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया
सुबह निकली थी धूप सज़-धज़ कर, उस तरफ़ अन्धेरें में
दिया किस जगह और कहाँ जलाना था,तू कहाँ बाल आया
दोस्तों, मालूम है एक बाजू जब से मेरा कट गया है,
अपने टूटे हुए बाजुओं से मैं , सारी दुनियाँ खँगाल आया
बाल आया - जला आया
अज़ीज़ जौनपुरी
waah waaaaaaa bhetri gazal hai .......
ReplyDeleteनई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
नाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया
kmal ka sher hai waaaaaaaaaah
Nice
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteBehtreen gazal aadarniya ....
ReplyDeleteसुबह निकली थी धूप सज़-धज़ कर, उस तरफ़ अन्धेरें में
ReplyDeleteदिया किस जगह और कहाँ जलाना था,तू कहाँ बाल आया
bahut sundar
बहुत खूब ,एक पत्थरआसमा से गिरा,और दूसरा तू उछाल आया
ReplyDeleteमुझको ईसा समझ तुमने,सारे पत्थर फ़िर उछाल आया
देखिए उस तरफ़ उजाला है जिधर रौशनी नहीं जाती
सलीब पे लटके ईसा से,फ़िर तू कर नया सवाल आया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (09-06-2013) को तो क्या हुआ : चर्चा मंच 1270 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अपने टूटे बाजू के बाद भी दुनियां खंगाल ने की कल्पना और शक्ति अति उत्तम।
ReplyDeleteनई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
ReplyDeleteनाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया
उम्दा अश’आर
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।
ReplyDeleteनई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
ReplyDeleteनाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया
वैसे सभी शेर बढ़िया है.
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दोस्तों, एक बाजू जब से मेरा कट गया है,मालूम है तुम्हें
ReplyDeleteअपने टूटे हुए बाजुओं से मैं , सारी दुनियाँ खँगाल आया
निःशब्द करते शब्द लाजवाब
शानदार,लाजबाब उम्दा गजल ,,
ReplyDeleteRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
नई तहज़ीब के तहत आईने अब नहीं डरते हैं पत्थरों से
ReplyDeleteनाहक, पत्थरों के सीने पर , तू एक आईना उछाल आया.
क्या लिखा है अज़ीज़ साहब मज़ा आ गया. बहुत सुंदर गज़ल.
क्या बात है अजीज साहब ... लाजवाब गज़ल है ... रोशनाई के रंग लिए ...
ReplyDeleteदोस्तों, एक बाजू जब से मेरा कट गया है,मालूम है तुम्हें
ReplyDeleteअपने टूटे हुए बाजुओं से मैं , सारी दुनियाँ खँगाल आया...........बहुत सुन्दर