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Thursday, June 13, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : नींद से चौंक पड़े

   

        नींद से चौंक पड़े


     तर-  बतर  हो  गया  अश्के - खूं से  बदन सारा 
     मुरझा    गये    मचलते    अरमानो   के   शज़र

     दर्दे -  खामोशियाँ   उनके    मसूम     चेहरे की 
     कफ़न  उड़   गया  ज्यों   हीं   पड़ी  उनपे  नज़र 

     एक -ब -एक  घट  गई   रौशनी  चाँद  तारों की
    ऐसी बिजली गिरीं कि ख़ाके -खूं  हो गया ज़िगर

    ज़नाज़ा   ज़िन्दगी  का   तेरे  दर  से  निकला है
    उठा  के  कफ़न  आज, मेरे  चेहरे पे कर दे नज़र

    है नीद में ख़्वाब या ख़्वाब में नीद है,मालूम नहीं
    मेरी  नज़र को  पेश कर दे  तू अपनी नूरे -नज़र

   उठा के हाथ दोनों ख़ुदा  से माँग ले तू  मेरा वज़ूद
   नीद से चौंक पड़े  ज्यों हुई तेरी नज़र  मेरी नज़र

    
                                              अज़ीज़ जौनपुरी
    
                                  

9 comments:

  1. उम्दा प्रस्तुति..बहुत बधाई..

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  2. बहोत उम्दा रचना है...वाह बहोत खूब......आपको बहोत बधाइ

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  3. वाह....
    ज़नाज़ा ज़िन्दगी का तेरे दर से निकला है
    उठा के कफ़न आज, मेरे चेहरे पे कर दे नज़र
    बेहतरीन ग़ज़ल...

    अनु

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  4. अद्भुत अनुभूति रचता काव्य!!

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  5. ज़नाज़ा ज़िन्दगी का तेरे दर से निकला है
    उठा के कफ़न आज, मेरे चेहरे पे कर दे नज़र

    वाह बेहतरीन लाजवाब शेर ...बहुत खूब

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  6. अनूठी रचना ..
    बधाई आपको !

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  7. सुन्दर प्रस्तुति ।

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  8. लाजवाब बेहतरीन ग़ज़ल दर्दे खामोशियाँ उनके मसूम चेहरे की
    कफ़न उड़ गया ज्यों हीं पड़ी उनपे नज़र
    एक -ब -एक घट गई रौशनी चाँद तारों की
    ऐसी बिजली गिरीं कि ख़ाके -खूं हो गया ज़िगर

    ज़नाज़ा ज़िन्दगी का तेरे दर से निकला है
    उठा के कफ़न आज, मेरे चेहरे पे कर दे नज़र

    है नीद में ख़्वाब या ख़्वाब में नीद है,मालूम नहीं
    मेरी नज़र को पेश कर दे तू अपनी नूरे -नज़र

    उठा के हाथ दोनों ख़ुदा से माँग ले तू मेरा वज़ूद
    नीद से चौंक पड़े ज्यों हुई तेरी नज़र मेरी नज़र

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  9. वाह !


    है नीद में ख़्वाब या ख़्वाब में नीद है,मालूम नहीं
    मेरी नज़र को पेश कर दे तू अपनी नूरे -नज़र

    शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .ॐ शान्ति .

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