शून्य
आदर्श के चेहरे पर अनर्थ की
अनगिनत परतों का जमावड़ा
मुखौटों पर मुखौटों की
असंख्य और घिनौनी सतहें
चेहरे पर नकली पाकीज़गी
बात -बात पर गीता कुरान की कश्मे
और मर्यादा का आवरण इतना
झीना कि सब कुछ पारदर्शी
तो ज़िन्दगी को एक जलती चिता
बनने में लगने वाला समय शून्य हो जाता है
मधु मुस्कान
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत प्रभावी ...
ReplyDeleteबहुत सार्थक और प्रभावी रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन प्रस्तुति ,नकली और बनावटी चेहरों पर चोट करती प्रभावी रचना
ReplyDeleteपरिमार्जित हिन्दी में प्रस्तुत सारगर्भित रचना हेतु साधुवाद !
ReplyDeleteप्रभावी रचना
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ReplyDeleteबहुत सशक्त भाव विह्वलता .
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeletenice
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