लड़ई रोज़ घर मा मेहरारू
आई गयल गज़बई मँहगाई , लोटा थरिया सब बिक जाई
लड़ई रोज़ घर मा मेहरारू , बा दिनवा रतियाँ मचल रोवाई
चोर - उचक्कन क मत पूँछ , एनहन क त बाटई चाँदी
नेतवन क कुरसी बची रहई ,भले देश जाय भाड़ में जाई
ऍम पी और ऍम लन, का देख, सब बहुतई चालू जोड़ जुगत मा
रोज़- रोज़ ई करईं घोटला, देश क नाम घोटाला भाई
जब- जब सूखा पड़ई देश में, सब मॉल कमायें जी भर भाई
बाढ़ देखि नेतवन ख़ुशी मनावईं,सब लूट-खसोट मचावैं भाई
जनता नहीं सुरक्षित कतहूं , बा सकतऊँ जीअब दूभर भाई
इज्ज़त बिटिया क दिन मा लूटई, रात लाश जलवाईं भाई
औकात नहीं एनहन क कछुवई, आग लगावईं सकतउं भाई
पहिन क कुर्ता खादी का ये दंगा -फ़साद करवावईं भाई
पहिलई बारिस में पुलवा बहि ग, ठीकेदार ऍम ल ए का भाई
लड़िका मास्टर स्कूल मा दबिगे,अईसन स्कूल बनावईं भाई
कतऊँ नहीं बा कौनौं सुरक्षा, मत बोल चुप होई जा भाई
रोज़ दरोगवा लूटई इज्ज़त, थनवा में बुलवावई भाई
भाड़ मा जाई देश क इज्ज़त, कहें तिरंगा लेई हाथ में भाई
औकात नहीं बोरा ओढ़ई क, पर ओढ़ईं मखमल क रजाई
मेहरारू = माह + रू (माह - चंद्रमा , रू - मुख) अपनी या अन्य
की पत्नी को मेहरारू कहते हैं ,आई गयल - आगई , गज़बई - गज़ब ,
थरिया - थाली ,एनहन - इनलोगों का , बाटई - है ,सकतऊं - सर्वत्र
दबिगे -दबगए ,अईसन-ऐसा ,बनवावईं -बनवाते हैं,कत-कहीं भी
बुलवावई -बुलवाता है, लेई -लेकर , ओढ़ई -ओढ़ते हैं ,
अज़ीज़ जौनपुरी
जनता नहीं सुरक्षित कतहूं , बा सकतऊँ जीअब दूभर भाई
इज्ज़त बिटिया क दिन मा लूटई, रात लाश जलवाईं भाई
औकात नहीं एनहन क कछुवई, आग लगावईं सकतउं भाई
पहिन क कुर्ता खादी का ये दंगा -फ़साद करवावईं भाई
पहिलई बारिस में पुलवा बहि ग, ठीकेदार ऍम ल ए का भाई
लड़िका मास्टर स्कूल मा दबिगे,अईसन स्कूल बनावईं भाई
कतऊँ नहीं बा कौनौं सुरक्षा, मत बोल चुप होई जा भाई
रोज़ दरोगवा लूटई इज्ज़त, थनवा में बुलवावई भाई
भाड़ मा जाई देश क इज्ज़त, कहें तिरंगा लेई हाथ में भाई
औकात नहीं बोरा ओढ़ई क, पर ओढ़ईं मखमल क रजाई
मेहरारू = माह + रू (माह - चंद्रमा , रू - मुख) अपनी या अन्य
की पत्नी को मेहरारू कहते हैं ,आई गयल - आगई , गज़बई - गज़ब ,
थरिया - थाली ,एनहन - इनलोगों का , बाटई - है ,सकतऊं - सर्वत्र
दबिगे -दबगए ,अईसन-ऐसा ,बनवावईं -बनवाते हैं,कत-कहीं भी
बुलवावई -बुलवाता है, लेई -लेकर , ओढ़ई -ओढ़ते हैं ,
अज़ीज़ जौनपुरी
आंचलिक भासा(बोली ) माँ खुबई अच्छो लिखतो अजीज भैया.बहुत अच्छा
ReplyDeletelatest post'वनफूल'
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
मंहगाई ,देश में व्याप्त भ्रस्टाचार, अत्याचार और अन्याय को उजगर करती सुन्दर प्रस्तुति,"जब मेहरारू अत्याचार ,शोषण क शिकार होई त ऊ लड्बई करी,...." महगाई और भष्टाचार ने देश को अपांग बना दिया है ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग्य है ......
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteलोक भाषा की मिठास को शब्दार्थ देकर आपने और भी बढ़ा दिया है .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
ReplyDeleteअज़ीज़ साहब आपने आंचलिक भाषा में बहुत हु सुन्दर आज के परिवेश का चित्रण किया है कोटिशः बधाई मगर ज़रा संभल कर पाँव रखें फिसलन काई की जियादा है
ReplyDeletebahut acha likha hai!
ReplyDeletepeeda vyakt karti khari rachna ..
ReplyDeletewaaaaaaaaaaah
ReplyDeletebhot khub kya kheni waaaaaaaaah
कतऊँ नहीं बा कौनौं सुरक्षा, मत बोल चुप होई जा भाई
ReplyDeleteरोज़ दरोगवा लूटई इज्ज़त, थनवा में बुलवावई भाई
साचे त कहनी
केतनो बक -बक करे कोई
चिकना घड़ा होवन सन
कओनों असर ना होखे के बा
ढेरे निकअ बानी बा(ख़ूबसूरत अभिव्यक्ती)
aapko ye shabad aavat hai aur bina angreji ke shabd milaye aapaki rachana sarahneey hai
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