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Wednesday, May 15, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी :ख़ुद को कातिल बताता रहा

           ख़ुद को कातिल बताता रहा  
      
            जख्म   पर  जख्म  खाता  रहा
            गम   हंस  -  हंस   उठाता रहा 

            थी   किराए  पे   ली    ज़िन्दगी 
           फ़िर   भी   मै   मुस्कुराता  रहा 

           उधारी  पर  लेकर  कर  कफ़न 
           लाश को खुद  ही मैं  उढाता रहा 

           आईना  था तो उनको  दिखाना 
           मैं   ख़ुद  को   ही   दिखाता रहा 

           था  नमक  हाथ में ले वो आया    
           समझ,   मरहम   लगाता  रहा 

           हाथ   में   ले  अपने  मैं  खंज़र 
           हंस ,   ख़ुद   पर   चलाता  रहा 
        
           कातिल   तो    था   कोई   और 
          मैं  ख़ुद को कातिल बताता रहा 
          
                            अजीज़ 'जौनपुरी"
        
         
         
   
  

13 comments:

  1. आईना था तो उनको दिखाना
    मैं ख़ुद को ही दिखाता रहा

    था नमक हाथ में ले वो आया
    समझ, मरहम लगाता रहा
    वाह वाह !!
    खूबसूरत अभिव्यक्ति
    उम्दा गजल

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  2. प्यार पर सबकुछ कुर्बान,बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति.

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post हे ! भारत के मातायों
    latest postअनुभूति : क्षणिकाएं

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  4. था नमक हाथ में ले वो आया
    समझ, मरहम लगाता रहा ..

    बहुत खूब .. क्या शेर बुना है ... लाजवाब भाव हैं ...

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  5. सुन्दर पंक्तियाँ:
    था नमक हाथ में ले वो आया
    समझ, मरहम लगाता रहा

    बढियां प्रस्तुति!

    -अभिजित (Reflections)

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  6. yu to poori gazal lazvab hai kya bat hai bhot khub
    pr ye sher
    आईना था तो उनको दिखाना
    मैं ख़ुद को ही दिखाता रहा
    behtrin hai aaine pe to sr dundh ne jao to hjaro shr milenge mgar ye sher sabse alag hai,shandar hai

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  7. बहुत सुन्दरजख्म पर जख्म खाता रहा
    गम हंस - हंस उठाता रहा

    थी किराए पे ली ज़िन्दगी
    फ़िर भी मै मुस्कुराता रहा

    उधारी पर लेकर कर कफ़न
    लाश को खुद ही मैं उढाता रहा

    आईना था तो उनको दिखाना
    मैं ख़ुद को ही दिखाता रहा

    था नमक हाथ में ले वो आया
    समझ, मरहम लगाता रहा

    हाथ में ले अपने मैं खंज़र
    हंस , ख़ुद पर चलाता रहा

    कातिल तो था कोई और
    मैं ख़ुद को कातिल बताता रहा





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  8. बहुत ही सुन्दर! लाजवाब! बेहतरीन!

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  9. हाथ में ले अपने मैं खंज़र
    हंस , ख़ुद पर चलाता रहा

    कातिल तो था कोई और
    मैं ख़ुद को कातिल बताता रहा

    ये दर्द भी कभी कभी हमारे हिस्से हम खुद लिख जाते हैं

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  10. कातिल तो था कोई और
    मैं ख़ुद को कातिल बताता रहा ........बहुत खूब

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  11. हाथ में ले अपने मैं खंज़र
    हंस , ख़ुद पर चलाता रहा

    कातिल तो था कोई और
    मैं ख़ुद को कातिल बताता रहा

    शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का .

    बढ़िया विस्तारित जानकारी के लिए आभार भी बधाई भी .

    शानदार अशआर चोट खाए फूंके हुए अशार

    कहता है फूंक फूंक गजलें ,शायर दुनिया का जला हुआ ....

    आंसू सूखा कहकहा हुआ ,आंसू सूखा कहकहा हुआ .

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  12. कबीले तारीफ़ ..बेहद अफ़सोस है इतने दिन इतक इतने शायर से रूबरू होने का मौका क्यों नहीं मिया.चर्चा मंच को धन्यवाद

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