आखिरी हिचकी
चंद घड़ियाँ बची हैं मेरी जिंदगी की
मेरे सीने में तुम अपनी सांसों को भर दो
वक्त की तो बहुत तेज रफ़्तार है
अपनी रहमत की चादर मेरे सर पे कर दो
छोड़ क्यूँ मुझको तुम यूँ अकेली चली
रह गया हो गर कोई एहसान मुझ पे
अपनी बाँहों भर उसको पूरा भी कर दो
है "अज़ीज़" की यह आखिरी गुजारिस
छोड़ मुझको अकेला न जाओगी कह दो
अज़ीज़ जौनपुरी
उम्मींदों का दामन अभी छोड़ा नहीं है
मेरी आँखों में अपने अश्कों को भर दो
छोड़ क्यूँ मुझको तुम यूँ अकेली चली
आखिरी साँस है,अपनी चाहत को भर दो
सिलसिला जिन्दगी का यूँ ही चलता रहे
अपनी सारी दुआएँ मेरे माथे पे कर दोसिलसिला जिन्दगी का यूँ ही चलता रहे
रह गया हो गर कोई एहसान मुझ पे
अपनी बाँहों भर उसको पूरा भी कर दो
है "अज़ीज़" की यह आखिरी गुजारिस
छोड़ मुझको अकेला न जाओगी कह दो
अज़ीज़ जौनपुरी
अज़ीज़ साहब ,उम्दा आप की इस खूबशूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteका स्वागत है सरिता जी की इन पंक्तिओं द्वारा ,
"तेरे हर कदम पे निसार है,मेरी चाहतें मेरी उल्फ्तें.मेरी रह तुझसे जुदा नहीं .तू जिधर गया मै उधर गयी .........
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का लिंक आज शुक्रवार (05-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!
उम्मींदों का दामन अभी छोड़ा नहीं है
ReplyDeleteमेरी आँखों में अपने अश्कों को भर दो.
वाह ...बहुत खूब
यूँ उम्मीदों का टूटना और आँखों का सहरा बनाना
दुनिया को जता न पाना,दोहरी मार अब सही नहीं जाती।
मेरे ब्लॉग पर भी आइये ..अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये
पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)
अजीज जी सबकी भावनाएं आपकी वाणी में। मन में उभर रहे भावों को सहज और सुंदर रूप में व्यक्त किया और कलापक्ष चुना गजल का,अतः और भी अधिक निखार आ गया।
ReplyDeleteडॉ.विजय शिंदे drvtshinde.blogspot.com
खुबसूरत एहसास-
ReplyDeleteआभार आदरणीय अजीज --
अज़ीज़ जौनपुरी साहब वाह क्या कहने बेहद सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteGod bless
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