Pages

Wednesday, April 3, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : बदली हुई चालें हैं

       बदली हुई चालें हैं 

    बदले    हुए    चेहरे   हैं   बदली    हुई   चालें हैं
    सहमे    हुए    मकाँ    हैं    बैचैन    शिवाले  हैं 
   
    खामोश   रो   रहीं   हैं   मस्ज़िद   की  अजानें
    मंदिर   की  घंटियों   की   आवाज़  पे  ताले हैं

    लूटी  थी   जिस  पुजारी ने  धनिया की आबरू 
    दिन   लौट   के  उसी   के   फ़िर  आने  वाले हैं
 
    उजड़ा   हुआ   गुलशन  है   ख़मोस  फिज़ाएँ हैं
    मुल्क  आज   अपना    कातिल   के  हवाले है

   सभी  हुक्मरां हैं शामिल मुल्क की महफ़िल में
   लूट   कर   वतन  को   जो   रोज़  खाने  वाले हैं

   आग   सेकने   में   कोई  सानी   नहीं  है उनका
    आग  देश  में लगा  सब  हाथ  सेकने   वाले हैं

   "अज़ीज़" तू  सुन ले कान  खोल कर बात मेरी
   ये   सब  अज़ीज़  तेरे  या  फ़िर मेंरे  घर वाले हैं

                                    अज़ीज़ जौनपुरी 
   
  
  

15 comments:

  1. 'अज़ीज़' तू सुन ले कान खोल कर बात मेरी।
    ये सब अज़ीज़ तेरे या फ़िर मेंरे घर वाले हैं।।
    यह दो पंक्तियां जबरदस्त आघात करने वाली और घर के भैदियों एवं गद्दारों की और संकेत करने वाला है। देशबक्तों के लिए सजग रहने का भी आवाहन है कि कुटिल चाल वालों से सावधान रहों।

    ReplyDelete
  2. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 06/04/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. वाह बहुत सुंदर गजल आज के सन्दर्भ में
    बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया है आदरणीय-
    शुभकामनायें स्वीकारें-

    ReplyDelete
  5. आज के बदलते हालात पर बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

    ReplyDelete
  6. सभी शेर बहुत उम्दा. सामयिक चिन्तन...
    उजड़ा हुआ गुलशन है ख़मोस फिज़ाएँ हैं
    मुल्क आज अपना कातिल के हवाले है

    दाद स्वीकारें.

    ReplyDelete
  7. आज के संदर्भ में अत्यन्त प्रासंगिक रचना की है आपने महोदय।
    यथार्थ चित्रण!

    ReplyDelete
  8. बेहतरीन अज़ीज़ साहब ,रश्मि जी ने ठीक ही लिखा है
    " जिंदगी क्या ढूंढती है मजबूर सांसों में यहाँ आप भी तो इस धुएं के पास आकर देखिये ....."

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर गजल

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया, नकाब चेहरे से हटा सामने आ भी जाओ यारों,अनोनिम्स न लिख नाम लिख दिया कीजे यारों,अनोनिम्स में लाखों चेहरे छिपे हैं यारों ,क्या
      लिखूं मोहतरम या मोहतरमा यारों ,रोज- रोज के लफड़ों से निजात पा जाओ यारों ,खुल के सामने आ जाओ यारों

      Delete
  10. लाजवाव ...बधाई

    ReplyDelete