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Friday, April 5, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : काम दुश्मन का दोस्त कर गये यारों

  
 काम दुश्मन का दोस्त कर गये यारों 

     
काम  दुश्मन  का    दोस्त  कर गये यारों 
दवा  के  नाम पे    ज़हर पिला  गये  यारों 

बढ़ा  के हाथ जो   दामन से लगा लेते थे 
वही  हँस- हँस  पीठ पर  वार  गये  यारों 

हमराज बन जो राज़े-दिल सुना करते थे 
बीच  मझधार वही छोड़ चल   दिये  यारों 

दोस्त जो कल हँस-हँस के बात करते थे 
आज  मुस्कुरा   के  वही   छल गये यारों

जो  घर की  दीवार बनाने के लिए आए थे  
दीवार  घर की  वही  गिरा  चल दिए यारों

 कल  शहर  में  उनसे   मुलाकात  हो गई 
 नज़रें झुका के वही दोस्त चल दिए यारों 

भूल  कर  भी  दोस्ती  न करना "अज़ीज़" 
मुखौटों में फिर वही दोस्त दिख गये यारों 

                                         अज़ीज़ जौनपुरी 






17 comments:

  1. आदरणीय जौनपुरी साहव आज के संदर्भ मे अप्रतिम रचना पेश की है आपने।
    यथार्थ दर्शन हो गया।वाह...
    सादर

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  2. अज़ीज़ साहब , बेशक एक शानदार ग़ज़ल आप की
    इस शानदार ग़ज़ल का स्वागत है "जब उनके
    चेहरे से नकाब उठा सब दिख गया यारों,उन्हें दोस्त
    कहूँ या दुश्मन तुम्हीं बताओ यारों .....

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  3. बहुत अछि ग़ज़ल ... बधाई !

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  4. कल शहर में उनसे मुलाकात हो गई
    नज़रें झुका के वही दोस्त चल दिए यारों...

    बहुत बेहतरीन सुंदर गजल!!!
    RECENT POST: जुल्म

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  5. कल शहर में उनसे मुलाकात हो गई
    नज़रें झुका के वही दोस्त चल दिए यारों

    अर्थ पूर्ण सामजिक सन्दर्भों पर व्यंग्य लिए है यह बेहतरीन गजल .

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  6. बेहद सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

    पीठ पीछे से हुए वार से डर लगता है,
    मुझे हर दोस्त से हर यार से डर लगता है.

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  7. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (07-04-2013) के चर्चा मंच 1207 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  8. बहुत उम्दा ....

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  9. -बहुत बढिया ग़ज़ल है

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  10. वाह....
    बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
    उम्दा शेर!!!

    अनु

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  11. बहुत बढिया ग़ज़ल..

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