काम दुश्मन का दोस्त कर गये यारों
काम दुश्मन का दोस्त कर गये यारों
दवा के नाम पे ज़हर पिला गये यारों
बढ़ा के हाथ जो दामन से लगा लेते थे
वही हँस- हँस पीठ पर वार गये यारों
हमराज बन जो राज़े-दिल सुना करते थे
बीच मझधार वही छोड़ चल दिये यारों
दोस्त जो कल हँस-हँस के बात करते थे
आज मुस्कुरा के वही छल गये यारों
जो घर की दीवार बनाने के लिए आए थे
जो घर की दीवार बनाने के लिए आए थे
दीवार घर की वही गिरा चल दिए यारों
कल शहर में उनसे मुलाकात हो गई
नज़रें झुका के वही दोस्त चल दिए यारों
भूल कर भी दोस्ती न करना "अज़ीज़"
मुखौटों में फिर वही दोस्त दिख गये यारों
मुखौटों में फिर वही दोस्त दिख गये यारों
अज़ीज़ जौनपुरी
शानदार ग़ज़ल.
ReplyDeleteआदरणीय जौनपुरी साहव आज के संदर्भ मे अप्रतिम रचना पेश की है आपने।
ReplyDeleteयथार्थ दर्शन हो गया।वाह...
सादर
अज़ीज़ साहब , बेशक एक शानदार ग़ज़ल आप की
ReplyDeleteइस शानदार ग़ज़ल का स्वागत है "जब उनके
चेहरे से नकाब उठा सब दिख गया यारों,उन्हें दोस्त
कहूँ या दुश्मन तुम्हीं बताओ यारों .....
सुन्दर गजल !!
ReplyDeleteआभार !!
वाह वाह ...
ReplyDeleteबहुत अछि ग़ज़ल ... बधाई !
ReplyDeleteशुद्ध हिंदी में खुबसूरत गजल
ReplyDeleteLATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल
कल शहर में उनसे मुलाकात हो गई
ReplyDeleteनज़रें झुका के वही दोस्त चल दिए यारों...
बहुत बेहतरीन सुंदर गजल!!!
RECENT POST: जुल्म
कल शहर में उनसे मुलाकात हो गई
ReplyDeleteनज़रें झुका के वही दोस्त चल दिए यारों
अर्थ पूर्ण सामजिक सन्दर्भों पर व्यंग्य लिए है यह बेहतरीन गजल .
बेहद सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteपीठ पीछे से हुए वार से डर लगता है,
मुझे हर दोस्त से हर यार से डर लगता है.
शानदार-जानदार !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (07-04-2013) के चर्चा मंच 1207 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteबहुत उम्दा ....
ReplyDeleteशानदार
ReplyDelete-बहुत बढिया ग़ज़ल है
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल....
उम्दा शेर!!!
अनु
बहुत बढिया ग़ज़ल..
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