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Tuesday, April 23, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी क्रूर नियति





    क्रूर नियति 


                 क्रूर  नियति  के  निष्ठुर  हाथों ,  यह  कैसा  अभिशाप  लिखा है 
        बचपन  की  स्वप्निल  स्मृतिओं  में  यह  कैसा संत्रास  लिखा है

                तुहिन  कणों  के  बिकट  सीत पर,  महारुदन का भाष्य लिखा है
       सूखे  अधरों   की  पीड़ा  पर ,  करुण  कथा  का एहसास लिखा है

       भूख   गरीबी   के  आँचल  पर  ,  सदिओं  का  इतिहास  लिखा है 
       माथे  पे   मरुथल  के   क्रंदन   का  यह   कैसा  उछ्वास  लिखा है

       एक  नहीं  अगणित  उत्पीड़न, गहन  तिमिर चिर-पास लिखा है 
                दुराचार   की   विकृत  पीड़ा  का  यह   कैसा   परिहास   लिखा है

      अपने  ही  घर   से  क्यों   अपनी  ही   माँ   का   बनबास लिखा है
      सदिओं   की   निर्वचन   व्यथा   का  यह   कैसा  उपहास लिखा है

                बूढ़े बाबा के बल्कल पर अश्रुधार का यह  कैसा एहसास  लिखा है 
               अपने  जीवन  के  बसन्त  में क्यों  पतझड़ का  मधुमास लिखा है

                                                                         अज़ीज़ जौनपुरी 

  भ                                                                                                                                                           

 

13 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post बे-शरम दरिंदें !
    latest post सजा कैसा हो ?

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  2. क्रूर नियति के निष्ठुर हाथों , यह कैसा अभिशाप लिखा है
    पन की स्वप्निल स्मृतिओं में यह कैसा संत्रास लिखा है
    वाह-वाह बहुत शानदार प्रस्तुति अजीज जौनपुरी जी बहुत- बहुत बधाई

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  3. बहुत ही सुन्दर! शब्द नहीं हैं कि इस रचना की तारीफ कर सकूं। मेरी ढेरों बधाईयां स्वीकार करें।

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  4. अज़ीज़ साहब ,बहुत ही शानदार प्रस्तुति , क्रूर नियति के निष्ठुर हाथों , यह कैसा अभिशाप लिखा है
    बचपन की स्वप्निल स्मृतिओं में यह कैसा संत्रास लिखा है

    तुहिन कणों के बिकट सीत पर, महारुदन का भाष्य लिखा है
    सूखे अधरों की पीड़ा पर , करुण कथा का एहसास लिखा है

    भूख गरीबी के आँचल पर,सदिओं का इतिहास लिखा है
    माथे पे मरुथल के क्रंदन का यह कैसा उछ्वास लिखा है

    एक नहीं अगणित उत्पीड़न, गहन तिमिर चिर- पास लिखा है
    दुराचार की विकृत पीड़ा का यह कैसा परिहास लिखा है
    सादर

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  5. क्रूर नियति के निष्ठुर हाथों , यह कैसा अभिशाप लिखा है
    बचपन की स्वप्निल स्मृतिओं में यह कैसा संत्रास लिखा है,,,

    वाह !!!,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
    RECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,

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  6. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर।

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  7. अपने ही घर से क्यों अपनी ही माँ का बनबास लिखा है
    सदिओं की निर्वचन व्यथा का यह कैसा उपहास लिखा है ..

    बहुत खूब ... हर शेर कुछ अलग सी बात कहता हुआ ... लाजवाब ...

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  8. हर शेर बहुत गहरे अर्थपूर्ण. बहुत संवेदनशील...

    अपने ही घर से क्यों अपनी ही माँ का बनबास लिखा है
    सदिओं की निर्वचन व्यथा का यह कैसा उपहास लिखा है

    दाद स्वीकारें.

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  9. सही कहा आपने .......!!

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  10. गहन अनुभूति सुंदर रचना
    बधाई

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  11. आपकी यह अप्रतिम प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारकर अवलोकन करें और आपका सुझाव/प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
    सादर

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