क्रूर नियति
क्रूर नियति के निष्ठुर हाथों , यह कैसा अभिशाप लिखा है
बचपन की स्वप्निल स्मृतिओं में यह कैसा संत्रास लिखा है
तुहिन कणों के बिकट सीत पर, महारुदन का भाष्य लिखा है
सूखे अधरों की पीड़ा पर , करुण कथा का एहसास लिखा है
भूख गरीबी के आँचल पर , सदिओं का इतिहास लिखा है
भूख गरीबी के आँचल पर , सदिओं का इतिहास लिखा है
माथे पे मरुथल के क्रंदन का यह कैसा उछ्वास लिखा है
एक नहीं अगणित उत्पीड़न, गहन तिमिर चिर-पास लिखा है
एक नहीं अगणित उत्पीड़न, गहन तिमिर चिर-पास लिखा है
दुराचार की विकृत पीड़ा का यह कैसा परिहास लिखा है
अपने ही घर से क्यों अपनी ही माँ का बनबास लिखा है
सदिओं की निर्वचन व्यथा का यह कैसा उपहास लिखा है
बूढ़े बाबा के बल्कल पर अश्रुधार का यह कैसा एहसास लिखा है
अपने जीवन के बसन्त में क्यों पतझड़ का मधुमास लिखा है
अज़ीज़ जौनपुरी
अज़ीज़ जौनपुरी
भ
aaha ha..........kya bat hai !!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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क्रूर नियति के निष्ठुर हाथों , यह कैसा अभिशाप लिखा है
ReplyDeleteपन की स्वप्निल स्मृतिओं में यह कैसा संत्रास लिखा है
वाह-वाह बहुत शानदार प्रस्तुति अजीज जौनपुरी जी बहुत- बहुत बधाई
बहुत ही सुन्दर! शब्द नहीं हैं कि इस रचना की तारीफ कर सकूं। मेरी ढेरों बधाईयां स्वीकार करें।
ReplyDeleteअज़ीज़ साहब ,बहुत ही शानदार प्रस्तुति , क्रूर नियति के निष्ठुर हाथों , यह कैसा अभिशाप लिखा है
ReplyDeleteबचपन की स्वप्निल स्मृतिओं में यह कैसा संत्रास लिखा है
तुहिन कणों के बिकट सीत पर, महारुदन का भाष्य लिखा है
सूखे अधरों की पीड़ा पर , करुण कथा का एहसास लिखा है
भूख गरीबी के आँचल पर,सदिओं का इतिहास लिखा है
माथे पे मरुथल के क्रंदन का यह कैसा उछ्वास लिखा है
एक नहीं अगणित उत्पीड़न, गहन तिमिर चिर- पास लिखा है
दुराचार की विकृत पीड़ा का यह कैसा परिहास लिखा है
सादर
क्रूर नियति के निष्ठुर हाथों , यह कैसा अभिशाप लिखा है
ReplyDeleteबचपन की स्वप्निल स्मृतिओं में यह कैसा संत्रास लिखा है,,,
वाह !!!,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
RECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर।
बहुत प्यारा सृजन.
ReplyDeleteअपने ही घर से क्यों अपनी ही माँ का बनबास लिखा है
ReplyDeleteसदिओं की निर्वचन व्यथा का यह कैसा उपहास लिखा है ..
बहुत खूब ... हर शेर कुछ अलग सी बात कहता हुआ ... लाजवाब ...
हर शेर बहुत गहरे अर्थपूर्ण. बहुत संवेदनशील...
ReplyDeleteअपने ही घर से क्यों अपनी ही माँ का बनबास लिखा है
सदिओं की निर्वचन व्यथा का यह कैसा उपहास लिखा है
दाद स्वीकारें.
सही कहा आपने .......!!
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ReplyDeleteगहन अनुभूति सुंदर रचना
बधाई
आपकी यह अप्रतिम प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारकर अवलोकन करें और आपका सुझाव/प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
ReplyDeleteसादर