प्रेम जो खोजन मैं चला
कबीरा पागल हो गया दिया आज वह रोय
प्रेम तिरोहित हो गया प्रेमी मिला न कोउ
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे लिया आज वह होय
रोवत-रोवत थक गया दिखा कहीं नहीं कोउ
कबीरा रोवत जग हँसत है माया ठगनी होय
माया में जग डूब गयो हैं बिन माया नहीं कोउ
चार कदम चतुराई चले प्रेम चले सुख होय
कबीरा माँगे भीख प्रेम की दानी मिला न कोउ
इधर -उधर सब देख लिया आँख रही है रोय
प्रेम मर गया जगत से अब कबीरा सुमरो कोउ
माया सापिन जग भया विष जीवन गया होय
प्रेम चिता मा जल गया प्रेमी मिला न कोउ
सबै पराया मोहिं दिखो हैं अपना दिखा न कोय
रो -रो कबीरा मर गया , विष जीवन गया होउ
होय -हो लिया /हो गया ; कोउ -कोई / किसको ; रोय - रो दिया ,
भया --हो गया
अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत अच्छा भाव
ReplyDeletelatest post सजा कैसा हो ?
latest post तुम अनन्त
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteप्रेम मर गया जगत से अब कबीरा सुमरो कोउ..........भावप्रवण। सुन्दर। प्रत्युत्तर हेतु आपका धन्यवाद।
ReplyDeletewaaaaaaaaaaaaah, sr waaah, kya bat hai
ReplyDeleteचार कदम चतुराई चले प्रेम चले सुख होय
ReplyDeleteकबीरा माँगे भीख प्रेम की दानी मिला न कोउ
भाई वाह .. पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग मे ! अच्छा लगा !
हकीकत यही है यह सारी कायनात सृष्टि ही पापमय हो गई है इसलिए गांधीनगर (ट्रांस यमुना ,पुरानी दिल्ली )थम नहीं रहा है .
ReplyDeleteकबीरा रोवत जग हँसत है माया ठगनी होय
माया में जग डूब गयो हैं बिन माया नहीं कोउ
bahut khoob .....
ReplyDeleteभावप्रवण पंक्तियाँ...यह तलाश हर संवेदनशील मनुष्य को है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावप्रवण पंक्तियाँ..
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