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Wednesday, April 24, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी :अर्थी साथ उठेगी

     अर्थी साथ उठेगी 

        अभी समय है सोच समझ  लो 
        बहाने    बाज़ी    नहीं    चलेगी 
      
        बदलते मौसम की   नब्ज़ देखो       
        फ़िर  हवा सुहानी  नहीं  चलेगी 

        समय की तपती शिला के उपर 
        कलम   तुम्हारी   नहीं   चलेगी

        स्मृतिओं  की  पावन घाटी में   
        खुशबू   नकली   नहीं  उड़ेगी 


        वफ़ा   परस्ती   करना  सीखो 
        धोखे    बाज़ी     नहीं    चलेगी 

       आँखों में  हैं सब ख़्वाब तुम्हारे
       मिज़ाजे  नफ़रत  नहीं  चलेगी

       मेरी  आदतों  में  सुमार  तुम  
       अदाए- फ़ितरत  नहीं  चलेगी

       तुम  अपने तौर -तरीके बदलो
       साजिशे-  हरकत  नहीं चलेगी 

       पकड़  के   ऊँगली  साथ  चलेंगें
      चिताएँ   अपनी   साथ   जलेंगी

      अज़ीज़  कब का मर गया होता  
      है  ज़िद   की अर्थी  साथ  उठेगी

 ( नेत्र विकार के चलते 15 मई के पश्चात पुन: उपस्थित हो पाउँगा )

                        अज़ीज़ जौनपुरी 

     
   

15 comments:

  1. पकड़ के ऊँगली साथ चलेंगें
    चिताएँ अपनी साथ जलेगी

    ...वाह! लाज़वाब अभिव्यक्ति..

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है किआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. क्षमा करें... इससे पूर्व की टिप्पणी में दिन गलत हो गया था..!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. खूबशूरत जिद ,ये न हुयी बात , अभी समय है सोच समझ लो
    बहाने बाज़ी नहीं चलेगी

    बदलते मौसम की नब्ज़ देखो
    फ़िर हवा सुहानी नहीं चलेगी

    समय की तपती शिला के उपर
    कलम तुम्हारी नहीं चलेगी...................... पकड़ के ऊँगली साथ चलेंगें
    चिताएँ अपनी साथ जलेंगी

    अज़ीज़ कब का मर गया होता
    है ज़िद की अर्थी साथ उठेगी

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  5. बहुत खूबसूरत....
    अज़ीज़ कब का मर गया होता
    है ज़िद की अर्थी साथ उठेगी

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  6. bahut hi behtrin ghazal ki prstuti.

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  7. बहुत सुन्दर .....

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  8. अति उत्तम प्रस्तुति!
    सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय।

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  9. बहुत सुन्दर! लाजवाब! आपको ढेरों बधाई!

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  10. पकड़ के ऊँगली साथ चलेंगें
    चिताएँ अपनी साथ जलेंगी

    अज़ीज़ कब का मर गया होता
    है ज़िद की अर्थी साथ उठेगी

    लाजवाब बधाई!

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  11. तुम अपने तौर -तरीके बदलो
    साजिशे- हरकत नहीं चलेगी
    बहुत बढ़िया

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  12. आँखों में हैं सब ख़्वाब तुम्हारे
    मिज़ाजे नफ़रत नहीं चलेगी
    बिल्कुल नहीं चलेगी
    चलनी ही नहीं चाहिए

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  13. स्मृतिओं की पावन घाटी में
    खुशबू नकली नहीं उड़ेगी


    स्मृतिओं की पावन घाटी में
    खुशबू नकली नहीं उड़ेगी

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