अर्थी साथ उठेगी
अभी समय है सोच समझ लो
बहाने बाज़ी नहीं चलेगी
बदलते मौसम की नब्ज़ देखो
फ़िर हवा सुहानी नहीं चलेगी
समय की तपती शिला के उपर
कलम तुम्हारी नहीं चलेगी
स्मृतिओं की पावन घाटी में
खुशबू नकली नहीं उड़ेगी
पकड़ के ऊँगली साथ चलेंगें
चिताएँ अपनी साथ जलेंगी
अज़ीज़ कब का मर गया होता
है ज़िद की अर्थी साथ उठेगी
( नेत्र विकार के चलते 15 मई के पश्चात पुन: उपस्थित हो पाउँगा )
अज़ीज़ जौनपुरी
स्मृतिओं की पावन घाटी में
खुशबू नकली नहीं उड़ेगी
वफ़ा परस्ती करना सीखो
धोखे बाज़ी नहीं चलेगी
आँखों में हैं सब ख़्वाब तुम्हारे
मिज़ाजे नफ़रत नहीं चलेगी
मेरी आदतों में सुमार तुम
अदाए- फ़ितरत नहीं चलेगी
तुम अपने तौर -तरीके बदलो
साजिशे- हरकत नहीं चलेगी
मेरी आदतों में सुमार तुम
अदाए- फ़ितरत नहीं चलेगी
तुम अपने तौर -तरीके बदलो
साजिशे- हरकत नहीं चलेगी
पकड़ के ऊँगली साथ चलेंगें
चिताएँ अपनी साथ जलेंगी
अज़ीज़ कब का मर गया होता
है ज़िद की अर्थी साथ उठेगी
( नेत्र विकार के चलते 15 मई के पश्चात पुन: उपस्थित हो पाउँगा )
अज़ीज़ जौनपुरी
oh........gret.....bhot khub waaah
ReplyDeleteपकड़ के ऊँगली साथ चलेंगें
ReplyDeleteचिताएँ अपनी साथ जलेगी
...वाह! लाज़वाब अभिव्यक्ति..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है किआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्षमा करें... इससे पूर्व की टिप्पणी में दिन गलत हो गया था..!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खूबशूरत जिद ,ये न हुयी बात , अभी समय है सोच समझ लो
ReplyDeleteबहाने बाज़ी नहीं चलेगी
बदलते मौसम की नब्ज़ देखो
फ़िर हवा सुहानी नहीं चलेगी
समय की तपती शिला के उपर
कलम तुम्हारी नहीं चलेगी...................... पकड़ के ऊँगली साथ चलेंगें
चिताएँ अपनी साथ जलेंगी
अज़ीज़ कब का मर गया होता
है ज़िद की अर्थी साथ उठेगी
बहुत खूबसूरत....
ReplyDeleteअज़ीज़ कब का मर गया होता
है ज़िद की अर्थी साथ उठेगी
bahut hi behtrin ghazal ki prstuti.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteअति उत्तम प्रस्तुति!
ReplyDeleteसादर बधाई स्वीकारें आदरणीय।
बहुत सुन्दर! लाजवाब! आपको ढेरों बधाई!
ReplyDeleteपकड़ के ऊँगली साथ चलेंगें
ReplyDeleteचिताएँ अपनी साथ जलेंगी
अज़ीज़ कब का मर गया होता
है ज़िद की अर्थी साथ उठेगी
लाजवाब बधाई!
तुम अपने तौर -तरीके बदलो
ReplyDeleteसाजिशे- हरकत नहीं चलेगी
बहुत बढ़िया
bahut khoobsurat ...
ReplyDeleteआँखों में हैं सब ख़्वाब तुम्हारे
ReplyDeleteमिज़ाजे नफ़रत नहीं चलेगी
बिल्कुल नहीं चलेगी
चलनी ही नहीं चाहिए
ReplyDeleteस्मृतिओं की पावन घाटी में
खुशबू नकली नहीं उड़ेगी
स्मृतिओं की पावन घाटी में
खुशबू नकली नहीं उड़ेगी