जलती हैं बेटियाँ
एक चीख सी उठती है मंदिर की दीवारों से
जब घर के आगन में जलती हैं बेटियाँ
एक शोर सा होता है मस्ज़िद की मिनारों से
जब ज़ुल्म की तहरीर बनती हैं बेटियाँ
एक आह सी उठती है संतों की मजारों से
जब बेटिओं के ख़ाक पे सिकती हैं रोटियाँ
एक सैलाब सा उठता है दरिया के किनारों से
जब शमशान की छाती पे बिछती हैं गोटियाँ
एक तूफ़ान सा उठता है ख़ामोश बहारों में
जब आग के हवाले अपनी होती हैं बेटियाँ
"अज़ीज़"तू भी पोत ले मुह पे अपने कालिख
तू भी तमासा देखता है जब जलती बेटियाँ
अज़ीज़ जौनपुरी
Very Very good Anil.
ReplyDeletebharat
बहुत उम्दा समायिक गजल ,आभार
ReplyDeleteRecent Post : अमन के लिए.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (13-04-2013) के रंग बिरंगी खट्टी मीठी चर्चा-चर्चा मंच 1213
(मयंक का कोना) पर भी होगी!
बैशाखी और नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ...सादर!
वाह अजीज sir बहुत ही मार्मिक गजल
ReplyDelete''नवरात्र ''भाग 1
बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक ग़ज़ल की प्रस्तुतीकरण.
ReplyDeleteअज़ीज़ साहब बेहतरीन
ReplyDeleteएक चीख सी उठती है मंदिर की दीवारों से
जब घर के आगन में जलती हैं बेटियाँ
एक शोर सा होता है मस्ज़िद की मिनारों से
जब ज़ुल्म की तहरीर बनती हैं बेटियाँ
एक आह सी उठती है संतों की मजारों से
जब बेटिओं के ख़ाक पे सिकती हैं रोटियाँ
एक सैलाब सा उठता है दरिया के किनारों से
जब शमशान की छाती पे बिछती हैं गोटियाँ
एक तूफ़ान सा उठता है ख़ामोश बहारों में
जब आग के हवाले अपनी होती हैं बेटियाँ
दिल को छू गयी आपकी ये रचना.......
ReplyDelete~सादर!!!
सही कहा है आप ने अज़ीज़ साहब ,दरिन्दे जब बेटिओं
ReplyDeleteको आग के हवाले करते हैं दिल करता है दरिंदों के बोटी -बोटी कर दूँ ,खून खौलने लगता है
आज के माहौल को केंद्रित करती सुंदर गज़ल.
ReplyDeleteनवरात्रि और नवसंवत्सर की अनेकानेक शुभकामनाएँ.
सच यह है किसिर्फट अपनी बेटियाँ ,बेटियाँ लगती हैं ,और पराई बेटियाँ तमाशा!
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