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Monday, April 1, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : कल ही तो तेरे शहर में

           कल ही तो तेरे शहर में




       कहीं   बिजली  गिरी  थी,  एक  शोर मचा था
       कल    ही   तो  तेरे   शहर   बरसात    हुई थी

       तुम     भींग     रही    थी,   मै   देख   रहा  था              
       कल   ही   तो  पहली  बार  मुलाकात  हुई थी

       चेहरे पे तेरी जुल्फ़ों ने क्या  हंगामा किया था
       मेरी जिन्दगी की पहली शब ए बारात हुई थी

       तेरा बहका- बहका  हुस्न  था, तू  नशे  में  थी
       कल  ही  तो  तेरे  हुस्न  से  मेरी  बात  हुई थी

       वो   मेरा  ज़नाज़ा  था  जो  तुम  देख  रही थी
       कल  ही  तो  तुमसे   आखिरी   बात   हुई थी

      माँगी  थी  दुआ  हमने   दोनों   हाथ उठा कर
      कल  ही   मेरे  ज़नाज़े  पे   तेरी  रात  हुई  थी

     आशिक  का ज़नाज़ा है , कह तू  झूम रही थी
      कल ही "अज़ीज़"  की  सुपुर्दे  ख़ाक  हुई थी  
   

                                             अज़ीज़ जौनपुरी 

8 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.


    देख कर हालत मेरी किस्मत मुझपे हस्ती है
    मैंने कहा कुछ भी नहीं यही मेरी परस्ती है

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  2. माँगी थी दुआ हमने दोनों हाथ उठा कर
    कल ही मेरे ज़नाज़े पे तेरी रात हुई थी,,,,बहुत उम्दा ,,,,

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  3. aziz sahab, roohani zazbe ki khoobshurat peskash ,"jis din tere shahar me varshat huyee thi,us din hi mere ghar ki deevar giri thi, tum bhi vhai khade the , jb mai bhig rahi thi,

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  4. तेरा बहका- बहका हुस्न था, तू नशे में थी
    कल ही तो तेरे हुस्न से मेरी बात हुई थी ..

    वाह ... क्या बात है ... शोख ओर चंचल ... लाजवाब है अंदाजे बयाँ ...

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  5. आशिक का ज़नाज़ा है , कह तू झूम रही थी
    कल ही "अज़ीज़" की सुपुर्दे ख़ाक हुई थी

    मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई .

    कल एक नै बात हुई .बहुत खूब लिखा है अज़ीज़ भाई .

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