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Saturday, March 30, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी : चेहरे उतरने लगे हैं

    चेहरे उतरने लगे हैं


     जिंदगी    के    अन्धेरें    मिटने   लगे  है
     अब  उजाले   मेरे  साथ  चलने     लगे  हैं 
     जिन लम्हों ने जिंदगी को छला था कभी,
     उन  लम्हों   के  पर  हम   कतरने लगे हैं 

     वादे    तो   थे   साथ   चलने   के  मगर,
     बीच  मझधार  छोड़  अब  चलने  लगे हैं 
     ता-उम्र   दोस्त  बन  कर जो  ठगते  रहे
     उनके   चेहरों   से  चेहरे   उतरने  लगे हैं 

    जो   साज़िश  के  किरदार  थे जिंदगी के
    अब   वो    बिलों    में    दुबकने    लगे हैं 
    बेदखल   करने   की   ज़िद  पे जो अड़े थे 
    उनके  शातिर इरादे  हम समझने लगे हैं

    निशाने   पे  मुझको  जो रख कर चले थे
   उनके   नज़रों   से  चश्मे  उतरने  लगें हैं
    इल्ज़ाम  मुझ  पर  जो लगते थे अक्सर
    धूल  चेहरों  से  उनके  अब उड़ने लगे हैं
   
     ले  हाथ  खंजर  जो  मेरे  पीछे पड़े थे
     उनके  हाथो  से  खंजर  गिरने लगे हैं 
     तेवर "अज़ीज़"के नज़रों के देख कर
     रंग  चेहरों  के   उनके उतरने लगे हैं

                                  अज़ीज़ जौनपुरी 





11 comments:

  1. उम्दा प्रस्तुति.

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  2. वादे तो थे साथ चलने के मगर,
    बीच मझधार छोड़ अब चलने लगे हैं
    ता-उम्र दोस्त बन कर जो ठगते रहे
    उनके चेहरों से चेहरे उतरने लगे हैं ...

    बहुत खूब ... जिंदगी की सचाइयों को लिहा है हर छंद में ... लाजवाब ...

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  3. वर्तमान सामाजिक परिदृश्य की परते उधेड़ती सुन्दर प्रस्तुति ********** जो साज़िश के किरदार थे जिंदगी के
    अब वो बिलों में दुबकने लगे हैं
    बेदखल करने की ज़िद पे जो अड़े थे
    उनके शातिर इरादे हम समझने लगे हैं

    निशाने पे मुझको जो रख कर चले थे
    उनके नज़रों से चश्मे उतरने लगें हैं
    इल्ज़ाम मुझ पर जो लगते थे अक्सर
    धूल चेहरों से उनके अब उड़ने लगे हैं

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    1. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति अजीज भाई,हर लफ्ज में जिंदगी की सच्चाई है.

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  4. निशाने पे मुझको जो रख कर चले थे
    उनके नज़रों से चश्मे उतरने लगें हैं
    इल्ज़ाम मुझ पर जो लगते थे अक्सर
    धूल चेहरों से उनके अब उड़ने लगे हैं-बढ़िया अभिव्यक्ति!
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  5. जिंदगी के अन्धेरें मिटने लगे है
    अब उजाले मेरे साथ चलने लगे हैं
    जिन लम्हों ने जिंदगी को छला था कभी,
    उन लम्हों के पर हम कतरने लगे हैं

    जिंदगी के अन्धेरें मिटने लगे है
    अब उजाले मेरे साथ चलने लगे हैं
    जिन लम्हों ने जिंदगी को छला था कभी,
    उन लम्हों के पर हम कतरने लगे हैं
    बहुत खूब !

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  6. ता-उम्र दोस्त बन कर जो ठगते रहे
    उनके चेहरों से चेहरे उतरने लगे हैं

    खूब कही आपने

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  7. वादे तो थे साथ चलने के मगर,
    बीच मझधार छोड़ अब चलने लगे हैं
    ता-उम्र दोस्त बन कर जो ठगते रहे
    उनके चेहरों से चेहरे उतरने लगे हैं ...
    बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,

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  8. तब तो कई चेहरे दिखने भी लगे हैं ..उम्दा..

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