चेहरे उतरने लगे हैं
जिंदगी के अन्धेरें मिटने लगे है
अब उजाले मेरे साथ चलने लगे हैं
अब उजाले मेरे साथ चलने लगे हैं
जिन लम्हों ने जिंदगी को छला था कभी,
उन लम्हों के पर हम कतरने लगे हैं
उन लम्हों के पर हम कतरने लगे हैं
वादे तो थे साथ चलने के मगर,
बीच मझधार छोड़ अब चलने लगे हैं
बीच मझधार छोड़ अब चलने लगे हैं
ता-उम्र दोस्त बन कर जो ठगते रहे
उनके चेहरों से चेहरे उतरने लगे हैं
उनके चेहरों से चेहरे उतरने लगे हैं
जो साज़िश के किरदार थे जिंदगी के
अब वो बिलों में दुबकने लगे हैं
अब वो बिलों में दुबकने लगे हैं
बेदखल करने की ज़िद पे जो अड़े थे
उनके शातिर इरादे हम समझने लगे हैं
उनके शातिर इरादे हम समझने लगे हैं
निशाने पे मुझको जो रख कर चले थे
उनके नज़रों से चश्मे उतरने लगें हैं
इल्ज़ाम मुझ पर जो लगते थे अक्सर
धूल चेहरों से उनके अब उड़ने लगे हैं
उनके नज़रों से चश्मे उतरने लगें हैं
इल्ज़ाम मुझ पर जो लगते थे अक्सर
धूल चेहरों से उनके अब उड़ने लगे हैं
ले हाथ खंजर जो मेरे पीछे पड़े थे
उनके हाथो से खंजर गिरने लगे हैं
उनके हाथो से खंजर गिरने लगे हैं
तेवर "अज़ीज़"के नज़रों के देख कर
रंग चेहरों के उनके उतरने लगे हैं
अज़ीज़ जौनपुरी
उम्दा प्रस्तुति.
ReplyDeleteवादे तो थे साथ चलने के मगर,
ReplyDeleteबीच मझधार छोड़ अब चलने लगे हैं
ता-उम्र दोस्त बन कर जो ठगते रहे
उनके चेहरों से चेहरे उतरने लगे हैं ...
बहुत खूब ... जिंदगी की सचाइयों को लिहा है हर छंद में ... लाजवाब ...
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य की परते उधेड़ती सुन्दर प्रस्तुति ********** जो साज़िश के किरदार थे जिंदगी के
ReplyDeleteअब वो बिलों में दुबकने लगे हैं
बेदखल करने की ज़िद पे जो अड़े थे
उनके शातिर इरादे हम समझने लगे हैं
निशाने पे मुझको जो रख कर चले थे
उनके नज़रों से चश्मे उतरने लगें हैं
इल्ज़ाम मुझ पर जो लगते थे अक्सर
धूल चेहरों से उनके अब उड़ने लगे हैं
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति अजीज भाई,हर लफ्ज में जिंदगी की सच्चाई है.
Deleteसुन्दर रचना !!
ReplyDeleteनिशाने पे मुझको जो रख कर चले थे
ReplyDeleteउनके नज़रों से चश्मे उतरने लगें हैं
इल्ज़ाम मुझ पर जो लगते थे अक्सर
धूल चेहरों से उनके अब उड़ने लगे हैं-बढ़िया अभिव्यक्ति!
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बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteजिंदगी के अन्धेरें मिटने लगे है
ReplyDeleteअब उजाले मेरे साथ चलने लगे हैं
जिन लम्हों ने जिंदगी को छला था कभी,
उन लम्हों के पर हम कतरने लगे हैं
जिंदगी के अन्धेरें मिटने लगे है
अब उजाले मेरे साथ चलने लगे हैं
जिन लम्हों ने जिंदगी को छला था कभी,
उन लम्हों के पर हम कतरने लगे हैं
बहुत खूब !
ता-उम्र दोस्त बन कर जो ठगते रहे
ReplyDeleteउनके चेहरों से चेहरे उतरने लगे हैं
खूब कही आपने
वादे तो थे साथ चलने के मगर,
ReplyDeleteबीच मझधार छोड़ अब चलने लगे हैं
ता-उम्र दोस्त बन कर जो ठगते रहे
उनके चेहरों से चेहरे उतरने लगे हैं ... बेहतरीन पंक्तियाँ,,,,
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तब तो कई चेहरे दिखने भी लगे हैं ..उम्दा..
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