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Thursday, March 28, 2013

अज़ीज़ जौनपुरी:ग़ालिब को कई दिल मगर अज़ीज़ को कई हाथ

 ग़ालिब को कई दिल, मगर अज़ीज़ को कई हाथ 

यारब  !या  दिल न   दिया  होता,या  दर्दे- दिल न  दिया होता 
दर्दे - दिल   दिया ,  तो   दिया,  इतना   ज्यादा  न दिया होता 

दर्दे - ज़िगर   इतना  दिया   कि  वो     सम्हाले  न   सम्हलता 
कम्बख्त,दिल एक  ही  काफ़ी  था,मगर  हाथ  कई दिया होता 

गमे- ए- हिज्राँ  भी  दिया तो  दिया  कुछ  दुआ  भी दिया होता 
हाथ दिल पे टिका रख़ा है, दर्दे-ज़िगर में क्यूँ न मर गया होता 

हाय,न दर्द  बे-इन्तिहाँ  दिया होता  न हाथ दिल  पे टिका होता 
ज़िगर! हाथ  में दिया  होता तो  दस्त,  ज़िगर पे न टिका होता 

ए-दस्ते  जिगर  न  सही , न सही ,दस्ते- दुआ तो दिया  होता 
ग़ालिब को कई दिल मग़र "अज़ीज़" को कई हाथ दिया होता  

      

                                                               अज़ीज़ जौनपुरी 

10 comments:

  1. या रब ! या दिल न दिया होता,या दर्दे- दिल न दिया होता
    दर्दे - दिल दिया , तो दिया, इतना ज्यादा न दिया होता

    बहुत सुन्दर !

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति ,कुछ अलग और कुछ हट कर****** दर्दे - ज़िगर इतना दिया कि वो न सम्हाले है सम्हलता
    कम्बख्त,दिल एक ही काफ़ी था,मगर हाथ कई दिया होता

    गमे- ए- हिज्राँ भी दिया तो दिया कुछ दुआ भी दिया होता
    हाथ दिल पे टिका रख़ा है, दर्दे-ज़िगर में क्यूँ न मर गया होता

    हाय,न दर्द बे-इन्तिहाँ दिया होता न हाथ दिल पे टिका होता
    ज़िगर! हाथ में दिया होता तो दस्त, ज़िगर पे न टिका होता

    ए-दस्ते जिगर न सही , न सही ,दस्ते- दुआ तो दिया होता
    ग़ालिब को कई दिल मग़र "अज़ीज़" को कई हाथ दिया होता

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  3. ए-दस्ते जिगर न सही , न सही ,दस्ते- दुआ तो दिया होता
    ग़ालिब को कई दिल मग़र "अज़ीज़" को कई हाथ दिया होता

    बढ़िया रचना है बिम्ब भी अर्थ अन्विति भी .

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  4. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.

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  5. वाह वाह क्या बात है अज़ीज़ साहब , ग़ालिब ने कहा था या रब दिल कई दिया होता और आप की ग़ज़ल कह रही है हाथ कई दिया होता,एक हाथ से दिल सम्हाल पाने में बहुत मुश्किल है ,ग़ज़ल में रब से यह भी गुज़ारिश की गयी है की अगर हाथ में दिल दिया होता तो थोडा जीना आसन हो जाता ,
    एक बेहतरीन और लीक से हट कर वैचारिक
    द्वंद एवम उहापोह की स्थिति को व्यक्त किया गया है,

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  6. वाह ... क्या बात है ... लाजवाब उम्दा शेर ...

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  7. ए-दस्ते जिगर न सही , न सही ,दस्ते- दुआ तो दिया होता
    ग़ालिब को कई दिल मग़र "अज़ीज़" को कई हाथ दिया होता

    बहुत सुन्दर

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