कोटि कोटि नमन : शिक्षक दिवस के अवसर पर
यह मेरे लिए परम सौभाग्य का विषय है की मेरा सम्बन्ध विगत सात दशकों से एक ऐसे परिवर से जुड़ा हुआ है जिसका प्रमुख कार्य पठन-पाठन ही रहा है l प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालयी स्तर के शिक्षण से सम्बद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण मेरी अभिरुचि का ताना -बाना संभवत: पठन -पाठन के धागों से ही सृजित हुआ है ,मै एक ऐसे पिता का पुत्र हूँ जो मेरे शिक्षक भी रहे हैं ,मेरे पितामह ने तत्काल परिस्थिओं को देखते हुए संभवतः स्वतंत्र रूप से ही शिक्षण के कार्य को चुना होगा l यह उनके स्वान्तः सुखाय की अभिलाषा का ही परिणाम प्रतीत होता है या कोई अन्य कारण रहा होगा ,कह पाना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल अवश्य है l मेरे पिता अत्यन्त अनुशासन प्रिय एवं समर्पित प्राथमिक शिक्षक थे फलतः उनकी कर्तव्य निष्ठा
और प्राथमिक शिक्षा में किए गए योगदान के कारण ही माननीय राज्यपाल ,गृहमंत्रालय तथा महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उन्हेंसम्मानितभीकियागया
प्रथम महत्व पूर्ण पक्ष जिसने मेरे जीवन को बड़ी गंभीरता से प्रभावित किया वह है परम पूज्य पंडित मदनमोहन मालवीय जी की सर्व विद्या की राजधानी- कशी हिन्दू विश्वविद्यालय का तत्कालीन परिवेश ,जहाँ मैंने आचार्य हजारी प्रसाद जी( हिंदी ) ,आचार्य बलदेव प्रसाद उपाध्याय (संस्कृत) ,प्रोफेसर गोपाल त्रिपाठी (प्रोद्योगिकी ) ,प्रोफेसर रामदेव मिश्रा(बनस्पति ) ,प्रोफेसर राजबली पांडे (इतिहास ) इत्यादी के नित दर्शन, प्रोफेसर टी आर वी मूर्ती , जो सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन के समकक्षी एवम विभागीय सहयोगी थे ,उनसे दो या तीन बार मिलने का क्रांतिक अनुभव तथा ,एक और अत्यन्त गंभीर प्रकृति के प्रोफेसर आर के त्रिपाठी जिन्होंने सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन के निर्देशन में शोध कार्य किया था तथा बाद के वर्षों में दर्शन शास्त्र विभाग के अध्यक्ष पद को भी शुशोभित किया ,से प्रायः प्रत्येक दिन मिलने के सौभाग्य ने मेरी अभिरुचिओं अभिमुखन अध्यापन की ओर कर दिया
दूसरा महत्वपूर्ण संदर्भ मेरी अभिरुचि के विषय भूगोल के अत्यंत प्रभावशाली शिक्षकों से जुड़ा हुआ है जिनके शिक्षण,प्रकशिक्ष्ण एवं निर्देशन ने मुझे एक शिक्षक बनने के सौभाग्य से सम्बद्ध कर दिया ,उन शिक्षको में से प्रोफेसर आर एल सिंह जी (मेरे शोधनिर्देशक भी ),प्रोफेसर एस एल कायस्थ जी,प्रोफेसर एन के पी सिन्हा जी ,प्रोफेसर ए एस जौहरी जी ,प्रोफेसर आर एन माथुर जी ,प्रोफेसर के एन सिंह जी ,श्री एन प्रसाद जी को इस जीवन में कीसी भी स्थिति में भूल पाना सम्भव इसलिए नहीं होगा क्यों की मेरे ए गुरु मन ,मस्तिष्क और स्नायुओं में घर कर गये हैं तीसरा महत्वपूर्ण बिन्दु मेरी माध्यमिक शिक्षा से जुड़ा है और मुख्यतह मेरे संस्कृत के शिक्षक पंडित लोटाधारी जी (बहुत ही गरम मिजाज़ ) ,हिन्दी के शिक्षक श्री सुमन जी तथा गणित एवम विज्ञान के शिक्षक श्री के पी सिंह जी के कठोर नियंत्रण के सांचे में विकशित हुआ है
चौथा सन्दर्भ मेरे उन गुरुओं से जोड़ कर देखा जाना इसलिए भी अनिवार्य कि इनके द्वारा दी जाने वाली प्रताड़ना का स्वरुप ही बिलकुल अलग था ,बिलम्ब होने पर एक पाली गई बकरी का चरणस्पर्श करना,या उसके चारे की व्यवस्था करना ,इत्यादि,सब याद कर अब मन में क्या भाव उठते होंगें ,इसकी अनुभूति मै और मेरे सहपाठी ही कर सकते है और जब कभी मिलते हैं तो बस मत पूछिये,मुझे इन शिक्षकों के नाम लिखने कि सायद हिम्म्त अभी भी नहीं होती यदि वे आस पास कहीं होते पर बड़ी हिम्मत जुटा कर लिख रहा हूं : श्री रामशिरोमणि शास्त्री जी,श्री मुरारी बबुशाहब जी ,श्री पारस नाथ जी,श्री इंद्रजीत मुंशी जी एवं मेरे पिता स्वर्गीय श्री ह्रदय नारायण सिंह जी , कोटिशः नमन .....................कोटिश : नमन
acha laga mera bhi sat sat naman
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