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Monday, September 3, 2012

Kumar Anil :dekha hai

देखा है 


किश्मत के घरौंदों को हर रोज बिखरते देखा है ,
जालिम दुनिया के पैरों तले अश्मत को कुचलते देखा है 
रंगीनी उनकी देखी है जलवा भी उनका देखा है 
इमानो धरम भी देखा है एहशाने करम भी देखा है 
हर शाम भी उनकी देखी है हर सुबह भी उनका देखा है 
जिन्दा पर नंगी लाशों पर मंडराते उनको देखा है 
हर रोज़ अँधेरी रातों में मदमाते उनको देखा है 
खुद ही खुद को नंगा करते सौ बार उन्ही को देखा है 


(ये चंद पंक्तियाँ 1979 की मेरी डायरी में मौजूद है,संभवतः ए मेरे ही उद्गार हैं ,मेरा पाठकों से विनम्र अनुरोध है की यदि उन्हें जरा भी यह लगे की ए पंक्तिया किसी और की हैं तो तत्काल सूचना संप्रेषित कर मुझे अनुग्रहीत करने की महती कृपा करें,जिससे मै साहित्यिक चोरी के गंभीर अपराध से बच सकू 

                                                                        अज़ीज़ जौनपुरी 

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