Pages

Sunday, September 2, 2012

अज़ीज़ जौनपुरी :सरपंच :

    अज़ीज़ जौनपुरी :सरपंच 


चलिए दिखायूं आपको एक यातना विध्वंस की 
जल  रही  है आज  भी वह  चिता  प्रतिशोध की
क्या  कहूँ  कैसे  बताऊँ  यह  कहानी  दुर्गंध की 
गाँव  सारा  जल  रहा  था चाल  थी  सरपंच की
है कहानी भूखी गाय की और लहलहाते खेत की 
लहलहाते खेत पर नज़र  क्या  गाय की पडगई
रोकते ही  रोकते वह  घुसघुस गई  उस  खेत में 
गाय को था  क्या  पता वह  खेत था सरपंच का
पर्याय जो अब बन गया था खून का आतंक का 
देखते ही देखते सरपंच ने इक गज़ब हुंकार की
सिरफ़िरे सब आ  गये बस एक  ही  आवाज़ में  
जल उठे  घर गाँव  सारा धू धू कर जल रहा  था
सरपंच कोने में खड़ा,क्या देखते हो कह रहा था
फूंक दो सारे  घरों को इन सब को  जिंदा  भून दो 
इनको बता दो आज तुम सरपंच ही  भगवन है
सरपंच  की पूजा करो  सरपंच की ही  जय करो

चढ़ावे सरपंच के मर्ज़ी मुताबिक रोज़ चढ़ने चाहिए 
हर रोज़  कृष्णा  इक  नई  बाँहों में गिरनी  चाहिए  

(यह कविता स्वर्गीय श्री अदम गोंडवी जी के चरणों में समर्पित )

                                             अज़ीज़ जौनपुरी 

4 comments:

  1. esme koe shak nahi hai,atyachar to huye hi hai aur ho bhi rahe hai,par ab badlav se enkar bhi nhi kiya ja sakta

    ReplyDelete
  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 4/9/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.inपर की जायेगी|

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर !

    सरपंच तो हर जगह नजर आते हैं
    कहीं गाय तो कहीं चूहों से काम चलाते हैं !

    ReplyDelete
  4. A stark commentary on social injustice and violence.

    Is this contemporary? I am not so sure. May be I am out of touch.

    One can only hope it becomes a thing of past, if it is not yet.

    Or, it will just prevail in some other form, the one that is more acceptable for the modern generation.

    ReplyDelete