Pages

Saturday, September 8, 2012

Kumar Anil :kuch kijiye

कुछ कीजिये 



    बात गैरों की यहाँ  मत  भूल कर भी कीजिये 
    गर सच्चाई  देखनी  है खुद को पहले  देखिये 

    आईने  भी झूठ  की तस्बीर गढ़ने लग गए  हैं 
    आईना पहले बदल,खुद तस्बीर अपनी देखिये
 
    सचाई  निर्वसन  होने की जिद पर अड़ गई  है
    मुखौटा चेहरे से हटा अपना असली चेहरा देखिये

    टूट जाते हैं यहाँ  रिश्ते सदिओं पुराने देखते ही
    डोर रिश्तों की बदलने की आदत पुरानी छोड़िये
    दस्ते-कातिल में लिए खंजर जो यूं  फिर रहे हो
    उंगलिओं  को प्यार की  भाषा  पढाना  सीखिए
    ताश के पत्तों सरीखे नाहक चालें बदलते रोज़ हो
    चार दिन की जिंदगी में बस प्रेम  करना सीखिए


                                              अज़ीज़ जौनपुरी 
    


                                  
    
   
    
  


   


No comments:

Post a Comment