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Sunday, September 9, 2012


      मैं आऊंगा 

 मै पथिक प्रिये  तुम  पथ  बनना
 तुम चुपचाप मेरे संग संग चलना
 मै  सब  कह दूंगा कुछ कहे बिना
 तुम  सुन  लेना  कुछ  सुने  बिना
 चक्षु   द्वार  से  ज्योति  पुंज बन
 गीत सुनाने,तुम्हे रिझाने मै आऊंगा .......मै आऊंगा ......................

 मन की  सूनी  पगडंडी   पर  चल
 बन   अतिथि   तुम्हारे  जीवन में 
 कर , हार लिए सुरभित पुष्पों का
 जीवन की स्वप्निल स्मृतिओं  में
 बन   विरह   वेदना   की  सरिता
 कल-कल की ध्वनि बन मै आऊंगा ..........मै आऊंगा

 पग ध्वनिओं की बन मौन चाप
 चुप-चाप  द्वार  से  आंगन तक
 यौवन के निश्छल गलिआरे में
 ले व्यथा-कथा अपने जीवन की
 अगणित पीड़ा की प्रतिमा बन
 आँचल लज्जा का  साथ लिए मै आऊंगा ........मै आऊंगा  
 वक्ष - वीथिका,   ह्रदय - बेदिका 
 के  अल्हड़  अन्धियारें पन  में     
 शर्मो-हया का  बस्त्र  पहन  कर
 ले पुष्प, दीप ,घृत,बाती हाथों  में
 पढ़- पढ़ गीता  और  रमायण
 दीप जलाने ज्योति जगाने मै आऊंगा .........मै आऊंगा
 

 
  
       
                                            अज़ीज़ जौनपुरी 
    


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