तर-बतर मन
हटाई शर्म की चादर बदन से क्या
कि अचानक सुहाना हो गया मौसम
सुरीले साज दिल के खुल गये सारे
मुस्करा खुद-ब- खुद हो गये सरगम
खिलखिला कर उतारे लाज के गहने क्या
सच निरंकुश होते- होते हो गया मधुबन
अर्थ भाषा भाव लय छंद बदन के खुल गये
देखते ही देखते ही मै बन गई शबनम
कुँवारी आँख के अंजन मचलने लग गये क्या
कि फडफडा कर देख उनको बन गये खंजन
प्यार की बूंदे लिएअचानक आ गए बादल क्या
कि बरस पल ही में तर- बतर कर गय मन
अज़ीज़ जौनपुरी
bahut khub
ReplyDeleteBehtreen Rachna Sajha ki....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन...
सादर
अनु