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Thursday, September 20, 2012

Kumar Anil :siyast

     सियासत 


    जब  हकों  की  बात उठती  है ज़माने  में 
    न जाने क्यों  सियासत गोली चलाती  है 

    मुद्दे जब उछलते  हैं अंधेरों को  मिटाने के 
    न जाने क्यों सियासत दीयों को बुझाती है 

    सच्चाई निर्वस्त्र  हो जब बाहर निकलती है 
    न जाने  क्यों  सियासत  संगीने  उठाती  है

    अस्मते जब  बेटिओं- बहुओं की  लुटती हैं
    न जाने क्यों सियासत  दंगों को  कराती है

   महाभारत में तो  द्रौपदी  केवल एक ही थी
   सियासत द्रौपदी क्यों हर घर में बनाती है

                                अज़ीज़ जौनपुरी 



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