सियासत
जब हकों की बात उठती है ज़माने में
न जाने क्यों सियासत गोली चलाती है
मुद्दे जब उछलते हैं अंधेरों को मिटाने के
न जाने क्यों सियासत दीयों को बुझाती है
सच्चाई निर्वस्त्र हो जब बाहर निकलती है
न जाने क्यों सियासत संगीने उठाती है
अस्मते जब बेटिओं- बहुओं की लुटती हैं
न जाने क्यों सियासत दंगों को कराती है
महाभारत में तो द्रौपदी केवल एक ही थी
सियासत द्रौपदी क्यों हर घर में बनाती है
अज़ीज़ जौनपुरी
अस्मते जब बेटिओं- बहुओं की लुटती हैं
न जाने क्यों सियासत दंगों को कराती है
महाभारत में तो द्रौपदी केवल एक ही थी
सियासत द्रौपदी क्यों हर घर में बनाती है
अज़ीज़ जौनपुरी
very nice
ReplyDelete