मुखाग्नि
अविरल गंगा के पवन तट पर, अग्नि लिए तुम अपने हाथों
प्रिये, तोड़ बंधन समाज के , मुखाग्नि की नव रीती बना दो
विस्मृतियो का कफ़न ओढ़ कर लाश एक खामोश पड़ी है
आओ - आओ पुष्प लिए तुम, स्मृतिओं की चिता लगा दो
जले चिता उस ठौर जहाँ पर स्मितिओं का बचपन झूला
आओ - आओ दीप लिए तुम , स्मृतिओं की चिता सजा दो
धवल वस्त्र को त्याग प्रिये तुम, परिणय के परिधान पहन कर
आओ- आओ अग्नि लिए तुम , ले -ले फेरे अग्नि लगा दो
अश्रु धार को रोक - रोक कर हो विमुख, छोड़ अर्थी पीछे
आओ- आओ बन अंजुली तुम स्मृतिओं की राख बहा दो
हे, पुत्र मुझे तुम क्षमा करो,है अधिकार तुम्हारा छीना मैने
दे दिया उसे अब माँ को है , इस नई प्रथा की रीती चला दो
अज़ीज़ जौनपुरी
अज़ीज़ जौनपुरी
अविरल गंगा के पवन तट पर (पावन ,पावन )
ReplyDeleteअग्नि लिए तुम अपने हाथों
प्रिये,तोड़ सब बंधन समाज के (प्रिय )
मुखाग्नि,तुम्ही ही अर्पित कर दो
विस्मृतियो का कफ़न ओढ़ कर
लाश एक चुप - चाप पड़ी है
आओ -आओ पुष्प लिए तुम
स्मृतिओं की चिता लगा दो
जले चिता उस ठौर जहाँ पर
स्मितिओं का बचपन झूला (स्मित /स्मृति ?/स्मृतियों )
आओ - आओ दीप लिए तुम
स्मृतिओं की चिता सजा दो
एक नै ज़मीन तोडती बेहद सशक्त रचना आपकी टिप्पणियों सी खरी .आभार .
अविरल गंगा के पवन तट पर (पावन ,पावन )
ReplyDeleteअग्नि लिए तुम अपने हाथों
प्रिये,तोड़ सब बंधन समाज के (प्रिय )
मुखाग्नि,तुम्ही ही अर्पित कर दो
विस्मृतियो का कफ़न ओढ़ कर
लाश एक चुप - चाप पड़ी है
आओ -आओ पुष्प लिए तुम
स्मृतिओं की चिता लगा दो
जले चिता उस ठौर जहाँ पर
स्मितिओं का बचपन झूला (स्मित /स्मृति ?/स्मृतियों )
आओ - आओ दीप लिए तुम
स्मृतिओं की चिता सजा दो
एक नै ज़मीन तोडती बेहद सशक्त रचना आपकी टिप्पणियों सी खरी .आभार .
अविरल गंगा के पवन तट पर (पावन ,पावन )
ReplyDeleteअग्नि लिए तुम अपने हाथों
प्रिये,तोड़ सब बंधन समाज के (प्रिय )
मुखाग्नि,तुम्ही ही अर्पित कर दो
विस्मृतियो का कफ़न ओढ़ कर
लाश एक चुप - चाप पड़ी है
आओ -आओ पुष्प लिए तुम
स्मृतिओं की चिता लगा दो
जले चिता उस ठौर जहाँ पर
स्मितिओं का बचपन झूला (स्मित /स्मृति ?/स्मृतियों )
आओ - आओ दीप लिए तुम
स्मृतिओं की चिता सजा दो
एक नै ज़मीन तोडती बेहद सशक्त रचना आपकी टिप्पणियों सी खरी .आभार .
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ReplyDeleteKumar Anil :mukhagni(1) »
ReplyDeleteमुखाग्नि (1) अविरल गंगा के पवन तट पर अग्नि लिए तुम अपने हाथों प्रिये,तोड़ सब बंधन समाज के मुखाग्नि,तुम्ही ही अर्पित कर दो विस्मृतियो का कफ़न ओढ़ कर लाश एक चुप - चाप पड़ी है...
बहुत बढ़िया रचना है सर नै ज़मीन तोड़ती परम्पराओं की .आपकी बेशकीमती टिपण्णी हमारे सिरहाने का राजदान है ,तकिया है .
धवल वस्त्र को त्याग प्रिये तुम
ReplyDeleteपरिणय के परिधान पहन कर
आओ-आओ अग्नि लिए तुम
लेकर फेरे तुम अग्नि लगा दो
खूब सूरत एहसास ,खूब सूरत आगाज़ प्रथा का .आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .
आपकी टिप्पणियाँ हमारे लिए विशेष दर्जा रखतीं हैं आभार .नै पोस्ट कहाँ है ज़नाब की ढूंढें नहीं मिल रही है
ReplyDeletemahila vidroh ki nyee awaz ko buland prastuti aur vidroh ki sulagti aag,bahut hi sudundar
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब .... प्रभावी और दिल को छू लेने वाले शेरों से सजी रचना ...
ReplyDeleteविस्मृतियो का कफ़न ओढ़ कर लाश एक खामोश पड़ी है
ReplyDeleteआओ - आओ पुष्प लिए तुम, स्मृतिओं की चिता लगा दो
....लाज़वाब...सभी शेर दिल को छू जाते हैं...बहुत प्रभावी रचना..
विस्मृतियो का कफ़न ओढ़ कर लाश एक खामोश पड़ी है
ReplyDeleteआओ - आओ पुष्प लिए तुम, स्मृतिओं की चिता लगा दो ..marmik ......
बहुत सुन्दर , मन को छूती हुयी रचना
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