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Wednesday, September 12, 2012

अज़ीज़ जौनपुरी :मुखाग्नि (२)

मुखाग्नि (2)


प्रतिकार  पुत्र  ने  किया नहीं 
पर कारण  इसका पूछ दिया 
बोला क्या कुछ गलती कर दी 
किस गलती की है सजा दिया 


देख उसे स्तब्ध मै  उठा बोल 
क्यों ऐसा  तुमने सोंच लिया 
यह  निर्णय माँ का ही तेरे है 
चुप रहा नहीं, मै  बोल  उठा 


आगमन  प्रथम  किसका  है 
माँ  का  या तेरा  इस  घर में  
झट खुद बोल उठा, माँ का  है 
कुछ घबराया पर चुप बैठ गया 


मैंने  पूछां क्यों  क्या हुआ तुझे 
बोला,नहीं नहीं अब समझ गया 
निश्चित है यह  मत तर्क युक्त
अधिकार प्रथम है माँ का होता  


बोला, प्रथा  हमे यह बतलाती  है 
अधिकार  पुत्र  का  यह पहला  है
तुम  सच  हो  पुत्र  सुनो  मेरी भी 
क्या प्रथाओं ने सदा अच्छा दिया है 


उसने कहा कुछ प्रथाएं तो  गलत हैं 
प्रतिकार उनका  है ज़रूरी हो गया 
सती,सीता ही सदा,क्यों होतीँ रहेंगी 
पति स्वयं को मुक्त कैसे कर लिया


सुन बात बेटे की मैं स्वं ही  हंस पड़ा  
बोला, उत्तर खुद तुम्हीं ने   दे दिया 
है क्या बुराई  माँ को अर्थी  उठाने  में 
अंततःपुत्र ने इसे स्वीकार कर लिया 


बचन दे उसने प्रथाओं को निभाने का 
 वादा कर गया इक मुहिम चलाने का
 माँ प्रथम, अधिकार उसका है  प्रथम
  कर स्वीकार माँ को हर्षित कर दिया  

                                  अज़ीज़ जौनपुरी 



  







1 comment:

  1. this is really good one..keep up da good work..we r proud of u

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