मुखाग्नि (3)
कर विश्वास पुत्र स्वयं पर
अभियान नया कर दिया सुरू
संग ले अपार जन मानस को
करने प्रण पूरा का ब्रत लेकर
थीं आनी बाधाएं पग पग पर
कर सहज स्वीकार विरोधों को
वह निकल पड़ा सब समझाने
पग कंटक की परवाह न कर
अनिवार्य सफलता मिलनी है
के उत्साहों से हो कर परिपूरित
विश्वास लिए बन राह स्वं वह
हो प्रचंड धार प्रस्थान कर दिया
जब देखा उसने उत्साह अनंत
पकड़ मार्ग ,कर खुद को प्रसश्त
ले बच्चे- बूढ़े नर- नारी सब
ब्रत पूरा करने वह निकल पड़ा
ब्रत पूरा करने वह निकल पड़ा
बज गया बिगुल उद्घोसों का
लक्ष्य भेदने वह निकल पड़ा
लिए आस वह शीघ्र विजय की
चल पड़ा जिधर सब चल पड़े उसी ओर
ले विजय पताका अ पने हाथों
माँ के चरणों से वह लिपट गया
हो गयी विजय का कोलाहल
धरती से अम्बर तक फ़ैल गया
अज़ीज़ जौनपुरी
No comments:
Post a Comment