माँ
माँ का आँचल क्या मिल गया
आँसुओं का सफ़र रुक गया
माँ की आँखों ने क्या निहारा
जिन्दगी का पता मिल गया
होंठ माथे पे क्या रख दिया
जैसे सहरा सज़र हो गया
माँ ने ऊँगली थी क्या सम्हाली
रास्ता हम- सफ़र हो गया
माँ ने बांहों में ज्यों ही समेटा
चाँद आंगन में आ सो गया
माँ ने लोरी संग जो थपकी दिया
आँचल चन्दन सा हो गया
(हर माँ के चरणों में समर्पित )
अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत बढ़िया अजीज भाई ||
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
मोटर में लिख घूमते, माँ का आशिर्वाद ।
जय माता दी बोलते, नित पावन अरदास ।
नित पावन अरदास, निकल माँ बाहर घर से ।
रोटी को मुहताज, कफ़न की खातिर तरसे ।
कह रविकर पगलाय, कहीं खाती माँ ठोकर ।
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर ।।
Who can be more special than a mother, always affectionate, always forgiving? She would even forgive the ungrateful son described in Mr. Ravikar's above lines.
ReplyDeleteNice poem, Aziz Saheb.
वाह!! बहुत खूब...बेहतरीन!!
ReplyDeletemaa kii shakti me bahut dam hota hai ...bahut sundar rachna ...
ReplyDeleteshubhkamnayen ..
aziz zaunpuri sahaab ,maa par kavitaa ,karunaa aur sneh se sansikt hai ,badhaai ,is vishay par bhi likhne -एक दुर्घटना लगातार घट रही है ,आभासी संवाद ही संवाद लगने लगा है .आभासी दुनिया से कटते ही आदमी असंतोष और खीझ से भरने लगा है यहाँ भारत लौटने पर यात्रा बहुलता(बहुलता
ReplyDelete) से
अल्पता
की ओर होती है .यहाँ आकर इंटर नेट भी सरकार की तरह लूला लंगड़ा हो जाता है .इसी अनुपात में खीझ बढती जाती है ,ख़ुशी आभासी दुनिया से जुड़ने लगी है .क्या यह सब ठीक है बहस इस पर
भी
हो असली संवाद है क्या ?
आपकी टिपण्णी हमारे ब्लॉग की शान रहे ,यही हमें अभिमान रहे .आदाब .
आपकी टिपण्णी हमारे ब्लॉग की शान रहे ,यही हमें अभिमान रहे .आदाब .
ReplyDeleteमाँ पर कविता नहीं यह श्रृद्धा का विस्फोट है कर्ज़ चुकती है माँ का अर्पण वन्दन कब कौन कैसे करे ,धारण करे वह नेहा ,समझ से रहे परे .
माँ से बढकर कुछ भी नहीं,बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteईश्वर के बाद माँ की ही स्तुति की जाती है इतनी .बढ़िया भाव उदगार .
ReplyDeleteसच कहा माँ का आंचल मिल गया सब मिल गया
ReplyDeleteमाँ का प्रेम अतुलनीय है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
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