धू -धू कर जलती बेटियाँ
ज़ुल्म की नई तहरीर लिखकर किताबों में
शब्द 'बेटी'का क्यूँ वेहद विषैला कर दिया है
फिज़ाओं में ज़हर के उन्नत बीज बोकर
हवाले मौत के अब बेटिओं को कर दिया है
आगमन को चीख की परिभाषा बनाकर
खून से बदरंग अपने घर को कर दिया है
शब्द 'बेटी'का माथे की सिकन अब हो गया
वहशिओं ने कितना घुप अँधेरा कर दिया है
धू-धू आग में जलना बेटिओं का देख कर
ख़ून सारा जिश्म का अब खौलने लग गया है
रोशनी के पाँव क्यूँ गुम हो गए यूँ अंधेरों में
हल इसका ढूढ़ना अब वेहद ज़रूरी हो गया है
बस इक गुज़ारिश यह है मेरी जम्हूरियत से
जलाते बेटिओं को जो उनको जलाना जरूरी हो गया है
अज़ीज़ जौनपुरी
उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteआह.....
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति....
बहुत बढ़िया...
सादर
अनु
vedna ki dasta ,sirfir ki kahani,bahut accha likha hai
ReplyDeleteबिटिया की महिमा अनन्त है।
ReplyDeleteबिटिया से घर में बसन्त है।।
ज़ुल्म की नई तहरीर लिखकर किताबों में
ReplyDeleteशब्द 'बेटी'का क्यूँ वेहद विषैला कर दिया है
फिज़ाओं में ज़हर के उन्नत बीज बोकर
हवाले मौत के अब बेटिओं को कर दिया है
शब्द 'बेटी'का माथे की सिकन अब हो गया
वहशिओं ने कितना घुप अँधेरा कर दिया है ...........बेहद चुभन भरी व्यंजना ...बड़ा गर्क हो इन वाशियों का इनके पूत दिलवाएं इन्हें काशी करवट ,....
ram ram bhai
बुधवार, 12 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने .
बेटियों के माँ बाप ही उन्हें बोझ समझेंगे अगर
ReplyDeleteजमाने को कहें क्या वह तो बेगाना हो गया है ।
बेटियों को सक्षम बनाना अब जरूरी हो गया है
उन्हें लडने के काबिल बनाना जरूरी हो गया है ।
उम्दा !!
ReplyDeleteये तो कुछ कुछ ऎसा हो गया है
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना नहीं........
जलाओ उन्हें पर रहे ध्यान इतना
जलाने वाल फिर कोई बच ना पाये...
आदमी जला भी दिया गया माना
बात तो तब है जब कोई उसकी
ये जलाने वाली आदत को जलाये
फिर इस जहाँ में भूल से भी
बेटी जल गयी कहीं कोई कह ना पाये !