किस तरह
खून से लथ -पथ हमारे हाथ दोनों हो गए हैं
न जाने मंदिरों में किस तरह पूजा हुआ होगा
इंसानियत किस कदर गूंगी औ बहरी हो गई
न जाने किस तरह मुंसिफ ने फैसला दिया होगा
खंजरों को दोस्तों के हाथ देख मौत भी घबरा गई
न जाने बेजुबानो ने कैसे कुछ भी कहा होगा
फैसले मुन्सिफों के खून से भी बदरंग हैं हो गए
न जाने अंधेरों ने कैसे सूरज को छला होगा
अज़ीज़ जौनपुरी
लपटें जुल्म की बैखौफ हो उठ रही हैं बस्तिओं से
न जाने मस्जिदों में किस तरह सज़दा हुआ होगा
दिलों में नफ़रतों की आग कैसी जल रही है
न जाने पंडितों ने किस तरह पोथी को पढ़ा होगा
इंसानियत किस कदर गूंगी औ बहरी हो गई
न जाने किस तरह मुंसिफ ने फैसला दिया होगा
खंजरों को दोस्तों के हाथ देख मौत भी घबरा गई
न जाने बेजुबानो ने कैसे कुछ भी कहा होगा
फैसले मुन्सिफों के खून से भी बदरंग हैं हो गए
न जाने अंधेरों ने कैसे सूरज को छला होगा
अज़ीज़ जौनपुरी
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