कबीर
कल सपने में क्यों फिर दिख गये कबीर
कहना कुछ तो चाह रहे थे पर चुप हो गये कबीर
लगता था कुछ खोज रहें हैं लिए लुकाठी हाँथ
बेबस हो अंधियारें में क्यों खुद खो गए कबीर
बस्ती - बस्ती भटक रहे थे भूख लपेटे पेट
आँखों में आँसू लिए क्यों दुख गए कबीर
मगहर से ले काशी तक नीरू - नीमा मिले नही
ढूँढ ढूँढ कर गली गली सब क्यों थक गए कबीरकाशी के पंडों ने घेरा जोलहों से घिर होगए अधीर
देखा तो बस आँसू बन आँखों से गिर गए कबीर
साखी सबद रमैनी पढ़- पढ़ क्यों रो दिए कबीर
नीद खुली तो दंग रह गया इतना दुख गए कबीरसाखी सबद रमैनी पढ़- पढ़ क्यों रो दिए कबीर
खड़े- खड़े अगणित हिस्सों में बट बट गए कबीर
आऊंगा काशी नहीं जाते जाते क्यों कह गए कबीर
अज़ीज़ जौनपुरी
आऊंगा काशी नहीं जाते जाते क्यों कह गए कबीर
अज़ीज़ जौनपुरी
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