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Tuesday, September 18, 2012

Kumar Anil :kabir

        कबीर 

   कल    सपने  में  क्यों  फिर  दिख  गये  कबीर 
   कहना कुछ तो चाह रहे थे पर चुप हो गये कबीर 
   लगता  था कुछ खोज रहें  हैं  लिए लुकाठी हाँथ 
    बेबस  हो अंधियारें  में क्यों  खुद खो गए कबीर 
   बस्ती - बस्ती  भटक  रहे  थे  भूख  लपेटे  पेट
   आँखों  में  आँसू  लिए  क्यों   दुख   गए  कबीर   
   मगहर से ले  काशी तक नीरू - नीमा मिले नही
   ढूँढ ढूँढ कर गली गली सब क्यों थक गए कबीर
   काशी के पंडों ने घेरा जोलहों से घिर होगए अधीर
   देखा तो बस  आँसू बन  आँखों से गिर गए कबीर
   साखी सबद रमैनी पढ़- पढ़ क्यों  रो  दिए कबीर
   नीद खुली तो दंग रह गया इतना  दुख गए कबीर
   खड़े- खड़े अगणित हिस्सों में बट  बट गए कबीर
   आऊंगा काशी नहीं जाते जाते क्यों कह गए कबीर

                                         अज़ीज़  जौनपुरी                    
  

  


  
    

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