कीचड़
जब जी में आए एक किस्सा बनाईये
शराफ़त के नाम पर कीचड़ उछालिये
अच्छा है हुनर आपमें इज्ज़त उतारिये
दूसरों की बेटिओं पर ठहाके लगाईये
क्या खूब अदा है खुदा खुद को बताईये
जब मुददा उठे शहर में तब मुँह छुपाइए
घर बुला-बुला के अपने जहरे-खूँ पिलाईये
पडोसिओं के घरों में घुस आग़ लगाईये
ख़ुद को निज़ाम औरों को नौकर बताईये
गर मौका मिलेको तो बिज़ली गीराईये
इस मुल्क की इज्ज़त पे न उगलीं उठाईये
हाथों को काट दूँगा बस कीजिए रुक जाईये
अज़ीज़ जौनपुरी
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