खून
खून का रंग लाल ही होता है ,यह अलग बात है की इसे हमारे प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने कभी सफ़ेद भी लिखा है , यदि यह उनके भावनात्मक अभिव्यक्ति की पराकास्ठा नहीं भी है तो भी कम से कम उनकी संवेदनाओं की अनंत गहराईओं में छिपी एक व्यथा अवश्य है ,बात लम्बी न खिच सके इस लिए इसे अब मोड देना अधिक उपयुक्त होगा क्यों की अनर्गल प्रलाप का तमाचा सुधी पाठकों द्वारा कब जड़ दिया ,इसका कोई भरोसा नहीं ,एक दिन अकस्मात् मै एक ऐसी जगह जा पंहुचा जहाँ सामन्ती ठसक में मूछों को उपर उठाए एक सज्जन गाँव की ही एक गरीब महिला को बड़े शान से यह कह रहे थे की तुम्हारी बेटी की ये हिम्मत कि वह मेरे बेटे को जवाब देने की हद तक पहुँच गई है ,वह कुछ सकपकाई और भय से कांपती हुई बोली हुजूर ऐसी क्या बात कर दी मेरी बेटी ने जो आप इतने गुस्से में हैं ,मूछों पर जरा उंगलियो को फेरते हुए वे सज्जन बोले बद्द्जात कहीं की ,तुम्हारी ये औकात की तुम मेरे सामने मुंह खोल रही हो,कहते हुए लातों की बौछार करना सुरू कर दिया , वह गिड़गिड़ाती हुई बोली माफ़ कर दीजिये हुजूर गलती हो गई ,रोते रोते वह आखिर पूछ ही बैठी ,हुजूर जो भी बात हो आप कह कर तो देखिये ,उसकी मै चमड़ी उधेड़ दूंगी ,उसकी इतनी हिम्मत ,यह कहते हुए उसके चेहरे पर अकस्मात मंद मंद मुस्कान देख सामंती सोंच में डूबे सज्जन कुछ हतप्रभ हो गुस्से में उस महिला को घूरते हुए बोले की तुम्हारी ये हिम्मत ,पर वह महिला विल्कुल निर्भीक हो अपने उस घाव को खोल कर उस सज्जन के सामने रखने ही वाली ही थी कि महोदय की आँखे निचे झुक गईं ,वह महिला बोल उठी ,क्यों कुछ याद आया ?हुज़ूर मेरी विद्रोह करने वाली लड़की !आपकी जोर जबरदस्ती का ही नतीजा है ,और उसकी रगों मे दौड़ने वाला खून .......... उसके तेवरों में आपके ही तेवर दिखाई देंगे ,उसका इतना कहना था की वह सज्जन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, उसने आख़िरकार यह कह ही दिया कि उसकी सकल तो आप और आपके बेटे कितनी मिलती है हुज़ूर, जरा कभी गौर से देखिएगा सज्जन अवाक् ,स्तब्ध और काटो तो शारीर में एक बूँद सफ़ेद खून भी नहीं
(हाल में ही सम्पादित यात्रा के दौरान एक यात्री द्वारा अभिव्यक्त विचार ) अज़ीज़जौनपुरी
accha likha hai aapne
ReplyDeleteBahut sahi kaha....
ReplyDeleteअच्छा
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