आखिरी ख्वाहिश
बहाना नीद का कर यूँ ही सो गया हूँ कब्रिस्तान में
फुर्शत हो गर,फातिहा पढने मेंरे दर पर चली आना
गुफ्तगू खुद से करता रहूँगा कब्र में सोते हुए भी
गर हो सके,थमती साँसों की सदा सुनने चली आना
बेशक बन शमा यूँ ही जलता रहूँगा सर्द रातों में
दास्ताँ सुनने - सुनाने, नंगे पाँव ही तुम चली आना
मुद्दतों से कैद हो चंद दीवारों में क़ज़ा से लड़ रहा हूँ
देखने मौत की जद्दोजहद अकेली तुम चली आना
ख्वाहिश आखिरी मेरी अब सिर्फ यह बच गई है
सुनने तुम मेरी ख्वाहिस आखिरी चली आना
सुनने तुम मेरी ख्वाहिस आखिरी चली आना
जिस वख्त इस जहाँ से आखिरी अलविदा कहना
मेरी ही कब्र में, मेरे बगल,चुपचाप सोने चली आना
अज़ीज़ जौनपुरी
मेरी ही कब्र में, मेरे बगल,चुपचाप सोने चली आना
अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
dil ko chu gya, meri bhi khwahish h
ReplyDeleteबहाना नीद का कर यूँ ही सो गया हूँ कब्रिस्तान में
ReplyDeleteफुर्शत हो गर,फातिहा पढने मेंरे दर पर चली आना.
उफ़ बेहतरीन.
बहुत खूब !
ReplyDeleteमुकम्मल नींद का जश्न मनाती रचना !
ReplyDelete~सुंदर अभिव्यक्ति!
~सादर!
बहुत मार्मिक प्रस्तुति ...बधाई आपको
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 01/05/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
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ReplyDeleteसशक्त रचना, गहरे तक उतरती हुई
उत्कृष्ट प्रस्तुति
विचार कीं अपेक्षा
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?