हासिया
जम्हूरियत है हासिये पर
कातिल सफ़े पर आगये
इस मुल्क के सब साँप ,
आस्तीनों से बाहर आ गये
देखा जो ज़मी गौर से,
पावँ हाथों मेंदोनों आगये
इंशानियत फंदों पे लटकी
सब हैवान बाहर आ गये,
माँगी थी इक उधार ज़िन्दगी
आँसू छलक के आ गये
मुल्क पर काबिज़ दरिंदे,
मौत बन कर छा गये
अज़ीज़ जौनपुरी
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