चलते-चलते
बड़ा ज़ाहिल है, खुदगर्ज़ भी पुस्तैनी है तूँ
आईना मुझको दिखा, चलते-चलते कह गई
खेल सब तुम्हारे हैं, बड़े शातिर खिलाड़ी हो
बड़े खेले-खाए हुए हो, चलते-चलते कह गई
एक चेहरे को छुपा रखे हो, लाखों मुखौटों से
नंगे हो चुके हो अब, चलते-चलते कह गई
हर चाल में माहिर हो, चालें हैं तेरी गज़ब की
कहते हो दूध के धोए हुए हैं,चलते-चलते कह गई
लूटते हो अशमतें रातों में रोज डाका डाल कर
देवता हो तुम कलयुगी, चलते-चलते कह गई
अज़ीज़ जौनपुरी
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