आपने
जिंदगी के ख़्वाब सारे यूँ धरे ही रह गए
बेवजह, क्यों ख़ुद को सताया आपने
क़िताबों में पढ़ी थी जो कहानी घुटन की
बेवजह, क्यों उसे दिल में बसाया आपने
धधकती आग सीने में किसकी छिपाकर
बेवजह, क्यों ख़ुद को रुलाया आपने
भावनाएँ बन कली जो खिल रहीं थीं
बेवजह,क्यों डाली से गिराया आपने
आईना से रूबरू हो जब सच्चाई देख ली
बेवजह,क्यों ख़ून के आंसू बहाया आपने
तबस्सुम जो खिला था सुर्ख़ चेहरे पर
बेवजह, क्यों स्याह उसको बनाया आपने
अज़ीज़ जौनपुरी
अज़ीज़ जौनपुरी
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